सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

व्यंग्य झांकी और बाकी

 

व्यंग्य

झांकी और बाकी

दर्शक

बाबरी मस्ज़िद तोड़ने के बाद उन्होंने कहा था कि अभी तो केवल झांकी है, काशी मथुरा बाकी है। इसके समानांतर साढे तीन सौ इमारतों की सूची भी घूमने लगी थी जो मुगल काल में बनी थीं और उसके साथ यह सन्देश भी चिपकाया गया था कि ये हिन्दू मन्दिरों को तोड़ कर बनायी गयी हैं।

प्रसिद्ध शायर कृष्ण बिहारी नूर का एक शे’र है-

कुछ घटे या बढे तो सच न रहे

झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं

अर्थात आम मान्यता के विपरीत सच तो सीमित है, किंतु झूठ असीम है। इसी असीमित हस्ती को लोग भगवान कहते हैं जिसे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान कहा जाता है। इन दिनों झूठ ही सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान होकर राज कर रहा है। राहत इन्दौरी कहते थे कि

मिरी निगाह में वो शख्स आदमी ही नहीं

जिसे लगा है ज़माना खुदा बनाने में

पहले झूठ मुख से बोला जाता था, अब उसे हजार मुख वाले मीडिया से बोला जाता है। गोएबल्स के ज़माने में मीडिया का यह रूप नहीं था अन्यथा वह झूठ को सच बनाने के लिए हजार बार बोलने की तरकीब नहीं बताता। जिस तरह से सुगर कोटेड पायजन होता है या प्राचीन काव्य में ‘विष रस भरा कनक घट ‘ कहा गया है, उसे ही आजकल धर्म की पोषाक में लपेट कर दिया गया झूठ कह सकते हैं। वे पुराणों को इतिहास बताते हैं और उनमें वर्णित अवैज्ञानिक घटनाओं को दिव्य शक्तियों द्वारा किये गये काम बताते हैं। यह दिव्य शक्तियां विदेशी आक्रांताओं द्वारा नष्ट कर दी गयी बताने लगते हैं।

ऐसा झूठ एक धर्म की दुकान से ही नहीं बेचा जा रहा है अपितु हर ब्रांड की दुकानों से बिकने वाले इन झूठों में प्रतियोगिता भी बहुत है। जब ज़िन्दगी अनिश्चितताओं से भरी हो तो किसी चमत्कार की आशा में धर्म की ओट में बेचे जा रहे रहस्य साधारण जन को लुभाने लगते हैं और वह उनके जाल में फंसा रहता है। कुटिल राजनीति की दुकाने उसे इसी जाल में गिरफ्तार करके रखना चाहती हैं। झूठा इतिहास, कपोल कल्पित पुराण, धर्म पर झूठे खतरे, और उनके नाम पर अपना वोट बैंक बना कर शक्ति, सत्ता और सम्पत्ति अर्जित करने वाले लोग झांकियों की अनवरत श्रंखला चलाना चाहते हैं। उनके लिए एक, दो या तीन या फिर साढे तीन सौ ही नहीं पूरा देश बाकी है। पहले मुसलमान, फिर ईसाई, फिर सिख, फिर पारसी, फिर बौद्ध, फिर जैन, फिर दलित फिर आदिवासी फिर वैश्य, फिर ये, फिर वो अर्थात ये मलबे के व्यापारी हैं और जो जहाँ से टूट सकता है, उसकी तोड़ फोड़ में लगे रहते हैं।

वे नहीं जानते कि इस तोड़ फोड़ के बाद भी जो रोटी, रोजगार का सवाल है वह जोड़ता भी है। किसानों ने न केवल माफी ही मंगवा ली अपितु इसे कुछ सिखों का आन्दोलन बताने वालों को जयश्रीराम के साथ अल्ला हो अकबर का नारा बुलन्द करा के दिखा दिया। दस लाख बैंक कर्मियों ने निजी लाभ के लिए नहीं अपितु सार्वजनिक सम्पत्ति की बिक्री के खिलाफ दो दिन की हड़ताल से कुछ संकेत दिया है तो जूनियर डाक्टर, से लेकर लाखों की संख्या में पंचायत कर्मी सड़कों पर उतर आये हैं। और अभी तो ये झांकी है अभी तो महाराष्ट्र, राजस्थान, छतीसगढ, के अलावा पाँच राज्यों के चुनाव बाकी हैं।        

 

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