सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

व्यंग्य अनुत्तरदायी सरकार दर्शक

 व्यंग्य

अनुत्तरदायी सरकार

दर्शक

सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह उतरदायी हो किंतु जब सरकार दाढी बढा कर मौनी बाबा बन कर बैठ गयी हो तो उत्तर कहाँ से मिलें, जनता कहाँ जाये? तुम सवाल पूछो, हम जवाब ही नहीं देंगे। मुकुट बिहारी सरोज ने एक पंक्ति कही है-

बन्द किवार किये बैठे हैं

अब आये कोई समझाने

हिंसा का प्रारम्भ ही वहाँ से होता है जहाँ पर सम्वाद की सम्भावना नहीं बचती। जो लड़ने के लिए उतावला होकर भी आया होता है, वह भी पहले गाली देता है और जब उसे उत्तर में उससे भी बड़ी गाली मिलती है तब उसे हिंसा का अधिकार मिल जाता है वह कहता है – अच्छा तूने माँ की गाली दी तो ये ले। गाली भी रिश्तों के हिसाब से गुरुतर , लघुतर होती जाती हैं और हिंसा का कारण भी उसके समानुपात में बदलता रहता है। इसमें पत्नी का रिश्ता सबसे नीचे रहता है। यही कारण है कि माँ बहिन के नाम पर दी जाने वाली गालियों की भीड़ में पत्नी के नाम की गाली भी सुनने में नहीं आती।

एक और तरीका है। बुन्देली में एक कहावत है- कोऊ कय कंउ की बऊ कंय मऊ की- अर्थात कोई कहीं की बात करे खांटी बुढिया को तो मऊरानीपुर की बात करना है। आप जासूसी की बात करें जिसमें पत्रकारों, सांसदों, विपक्ष के नेता, सुप्रीम कोर्ट के जज, चुनाव आयुक्त, सेना के अधिकारी ही नहीं सरकार् के अपने मंत्रियों की जासूसी की भी बात हो पर प्रधानमंत्री उत्तर में कहते मिलेंगे कि विपक्ष नये मंत्रियों का परिचय इसलिए नहीं सुनना चाहता क्योंकि वे दलित पिछड़े और महिला वर्ग से आते हैं। परम्परा की दुहाई तो दी जाती है किंतु यह भुला दिया जाता है कि परम्परा तो यह भी है कि दिवंगत सांसदों के लिए श्रद्धांजलि प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष खड़े होकर पढता है।

जब इमरजैंसी के बाद देश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो श्रीमती इन्दिरा गांधी को हराने वाले राज नारायण को स्वास्थ मंत्री बनाया गया। उन्होंने अंग्रेजी में पूछे गये एक प्रश्न का उत्तर हिन्दी में दिया तो दक्षिण के उन सांसद ने कहा कि मुझे हिन्दी नहीं आती। कृप्या आप अंग्रेजी में उत्तर दीजिए या तमिल में दीजिए।  राज नारायण ने कहा कि ना तो मेरा बाप अंग्रेज था और ना ही माँ अंग्रेज थी इसलिए मैं तो हिन्दी में ही दूंगा। व्यवस्था का सवाल उठा और अध्यक्ष ने कहा कि आप अगर अंग्रेजी में नहीं देना चाहते तो क्षेत्रीय भाषा में जवाब दिया करें। अगले दिन वे सारे जवाब तमिल में लिखवा कर लाये जिनमें बंगाल के लोगों के भी सवाल थे। बंगाली सांसद ने कहा कि मुझे हिन्दी आती है, अंग्रेजी आती है, बंगला आती है पर तमिल नहीं आती। आप चाहें तो हिन्दी में दे दीजिए। लेकिन राज नारायण तो राज नारायण बोले मैं तो तमिल में ही दूंगा।

वर्तमान सरकार के पास भी यही हाल है। यहाँ दर्जनों जान क्विकजोट बैठे हैं। डाक्टर नाम देख कर एक पशु चिकित्सक को स्वास्थ मंत्री बना दिया जाता है प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में मिडिल पास व्यक्ति को बैठा दिया जाता है और सरकार सवालों को घुमाती रहती है। जो ज्यदा सवाल करता है उसे देशद्रोही, गद्दार, बता दिया जाता है।    




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