व्यंग्य
जीप पर सवार
दर्शक
शरद जोशी के एक व्यंग्य और उसी पर आधारित एक संकलन का नाम है ‘जीप पर सवार
इल्लियां’। इल्लियां काटती नहीं हैं, किंतु वह लिजलिजा सा प्राणी घिन पैदा करता
है। भले ही उससे किसी बड़ी बीमारी के फैलने की खबर अभी तक नहीं सुनी गयी हो किंतु
जिस फल, सब्जी, या अनाज में इल्लियां पड़ जाती हैं उसे फेंक ही दिया जाता है। उस
घिन से बचने के लिए यह आर्थिक नुकसान सह लिया जाता है। शरद जोशी ने नौकरशाही और
राजनीति के जिस वर्ग को घृणास्पद समझा उसे इल्लियों की उपमा दी।
तब से अब तक माहौल बहुत बदल गया है। अब जीप पर इल्लियां नहीं खूंखार घूमते
हैं। जीप भी अब अपना रूप बदल कर फार्चूनर तक पहुंच गयी है। जिनका फार्च्यून दूसरे
के भविष्य को रौंद सकता है वे सब के सब फार्चूनरों में दौड़ रहे हैं। इन ऊंची ऊंची
जीपों के बड़े बड़े पहिए काले धन से अर्जित अकूत कमाई और अहंकार से चलते हैं। इन
दैत्यों को किसान मजदूर कीड़े मकोड़े दिखते हैं। तिजोरियों में भरे काले धन के साथ
साथ कानून उनकी जेब में रहता है और अदालतों को तो अपना निजी स्टाफ मान कर चलते
हैं। और बकौल मुकुट बिहारी सरोज –
कोई क्या सीमा नापे, इनके अधिकारों की
ये खुद जन्मपत्रियां
लिखते हैं सरकारों की
इसलिए
ये जो कहें प्रमाण,
करें वो ही प्रतिमान बने
इनने जब जब चाहा तब
तब नये विधान बने
इन्हें ना पुलिस की परवाह है, ना कानून का डर। बकौल डा, के, बी, एल पाण्डेय -
कुछ कलाइयां हो गईं,
इतनी सबल महान
छोटी पड़ गई हथकड़ी,
बौने दण्ड विधान
वे बर्बर, खूंखार पहले से चेतावनी
देते हुए घूम रहे हैं और अदालतों द्वारा जंगल राज कहे जाने पर वे खुद को शेर समझने
की पुष्टि मानते है। वे देश के मालिक हैं, जिसे चाहे रहने देंगे और जिसे चाहे बाहर
कर देंगे।
जिन गाड़ियों से ये किसानों, मजदूरों को कुचलते हैं उसे उन्होंने शुभ महूर्त
में खरीदा होता है और सुरक्षा के लिए पूजा पाठ कराके नींबू मिर्च बांधा होगा।
अन्दर किसी देवी देवता की फोटो लगी होगी, जयकारा लिखा होगा। अगर किसी मजबूरीवश
इन्हें किसी जाँच समिति के सामने उपस्थित होना पड़ जाये तो भी तारीख इनकी होती है, कि
ये कब आयेंगे। ये कई कई मन्दिरों में पूजा पाठ कर के तिलक लगवा कर बादशाहों की तरह
आते हैं। राफेल विमान तक पर नींबू मिर्च बाँधने के लिए फ्रांस तक जाने वाले खुद को
रक्षा मंत्री कहते हैं और इसे परम्परा बताते हैं। उन्हें पता नहीं कि नींबू और हरी
मिर्च हमारे देश में कब और कहाँ से आयी। मौखिक आलोचना तालिबानों की करेंगे पर
दुराचरण उन से बढ कर करेंगे। नंगा झूठ बोलने में इनका कोई मुकाबला नहीं। दुष्यंत
कुमार ने सही कहा है-
गजब है, सच को सच
कहते नहीं हैं
कुरानो- उपनिषद खोले
हुये हैं
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