सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

व्यंग्य लड़की हूं लड़ सकती हूँ

 

व्यंग्य

लड़की हूं लड़ सकती हूँ

दर्शक

चुनावों के दौरान सक्रिय होने वाली पार्टी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की नई नेता प्रियंका गाँधी ने पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से एक उत्त्तर प्रदेश के चुनावों के लिए एक नया नारा दिया है – लड़की हूं लड़ सकती हूं।

उक्त नारा देते समय उन्होंने प्रदेश के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी की ओर से चालीस प्रतिशत टिकिट महिलाओं को देने का वादा किया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत उन्होंने महिलाओं की मैराथन [दौड़] के आयोजन भी किये जिसमें ढेर सारी लड़कियां दौड़ीं, जो दो साल से लाक डाउन के कारण घरों में कैद थीं। ऐसी दौड़ें और भी होतीं अगर सरकार को दौड़ में कोरोना के नये वाइब्रेंट का पता नहीं चला होता। ऐसा लग रहा था कि लड़कियां यह सन्देश दे रही थीं कि लड़की हूं लड़ ही नहीं सकती दौड़ भी सकती हूं।

लड़कियां दौड़ीं, और दौड़ने के साथ साथ लड़ने भी लगीं कि उनका नम्बर दौड़ में कौन सा था। बहुत सी लड़कियों ने तो यह समझा था कि चुनावी पार्टी में लड़ने का मतलब चुनाव लड़ने से ही होगा, क्योंकि उन्हें यह तो बताया ही नहीं गया कि उनका दुश्मन कौन है और उन्हें किस से लड़ना है। यह गलतफहमी इसलिए भी हुयी होगी क्योंकि उसी दौरान चलीस प्रतिशत टिकिट देने की बात भी कही गयी थी। जैसे ही चुनाव घोषित हुये और टिकिट बंटना शुरू हुये तो लड़कियां लड़ने लगीं कि टिकिट उन्हें मिलना चाहिए। अब, सबको तो टिकिट मिल नहीं सकता अतः जिसे नहीं मिला वे प्रियंका गाँधी से ही लड़ने लगीं। उनके पोस्टर की तीनों लड़कियां एक एक करके काँग्रेस से लड़ कर चली गयीं, और भाजपा में शामिल हो गयीं।

लड़ने का नारा देते समय प्रियंका ने उन्हें यह तो बताया ही नहीं था कि समाज का दुश्मन कौन है। शायद उन्हें खुद भी पता नहीं हो। जिन मन्दिरों में भाजपाई चक्कर लगाते हैं उन्हीं में तरह तरह से माथा रंग के प्रियंका और उनके भाई राहुल गाँधी जाकर खुद को हिन्दू साबित कराने लगते हैं। जब मनमोहन सिंह ने नई आर्थिक नीतियों की घोषणा की थी तब संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि इन्होंने हमारी नीतियां हाईजैक कर ली हैं। सो दोनों की आर्थिक नीतियां भी एक ही हुयीं। सो लड़कियां लड़ते लड़ते भाजपा में प्रविष्ट हो गयीं।   

उक्त नारा देते समय प्रियंका की समझ यह रही होगी कि लड़कियां पुरुषों की तरह लड़ नहीं सकतीं इसलिए उन्हें नारे से प्रेरित करना चाहिए। लड़ाई में प्रेरणा का बहुत महत्व होता है। सामंत काल में हर राजा के पास चारण होते थे जो तरह तरह के सुसुप्तों, कायरों, आलसियों को बहादुर बता कर उनकी भुजायें फड़कवा दिया करते थे। महाभारत में भी कृष्ण को अर्जुन को प्रोत्साहित करना पड़ा था और अर्जुन को बताना पड़ा था कि लड़के हो लड़ सकते हो।  कल दो लोगों में मुँह्वाद हो रहा था, रामभरोसे ने एक को समझाया तब लाठियां चलीं।

कर्नाटक में भी लड़कियां कालेज प्रबन्धन से भिड़ गईं और अपनी बात मनवा भी लेतीं किंतु लड़कियां मुस्लिम थीं और देश में चुनाव चल रहे थे सो गले में भगवा पट्टा और मुँह में जय श्री राम लेकर दूसरे छात्रों को भी उतार दिया गया। बिल्कुल वैसे ही जैसे- तुम कौन?

‘ हम खामखां’   

अब खामखाँ साहब का एक इतिहास है जो बहुत काला है। इसलिए मामला और भड़क गया। वे भी यही चाहते थे ताकि गोदी मीडिया के माध्यम से बात चुनावी राज्यों तक पहुंचे।, सो पहुँच गयी।

लड़कियों की लड़ाई तो पीछे छूट गयी है अब तो कुत्ते लड़ रहे हैं।

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