व्यंग्य
उठाईगीरे
दर्शक
एक विवादास्पद बड़ी प्रापर्टी थी। कई भाइयों व बहिनों के बीच विरासत में मिली
प्रापर्टी का विवाद था। कुछ भाई मर गये थे, तो विवादियों की संख्या में विस्तार
करने के लिए उनके कई वारिस जीवित थे। बंटवारा नहीं हुआ था। जो हिस्सा जिसके कब्जे
में था वह उसका उपयोग कर रहा था। कुछ ने अपने कब्जे के हिस्से को किराये पर उठा दिया था। बंटवारे से पहले खरीदने वाले
ग्राहक ही नहीं मिल पा रहे थे जो सही दाम दे सकें। एक भाई को पैसे की जरूरत पड़ी तो
उसने अपने अधिकार वाली दुकान को किराये पर उठा दिया। एक चतुर वकील ने तरकीब सुझायी
जिसके अनुसार उन्होंने किरायेदार से दुकान की कीमत के बराबर रकम का उधारनामा
बनवाया जिसमें लिखवाया कि दो वर्ष के अन्दर अगर उधारी और ब्याज की रकम चुकता नहीं
की गयी तो उसे दुकान को बेचने का अधिकार होगा। तय समय में रकम चुकता नहीं की गयी
और किरायेदार ने अपने ही बेटे को दुकान बेच दी। भाइयों ने असहमति जताई तो
सम्बन्धित ने कहा कि एक हिस्सा तो मेरा बनता है जब बंटवारा हो तो उसे मेरे हिस्से
में से काट लेना। सब चुप हो गये क्योंकि वे बंटवारा करने की स्थिति में नहीं थे।
लगता है कि ऐसे ही चतुर वकील भारत सरकार के प्रधानमंत्री मोदीजी को भी मिल गये
हैं जिन्होंने देश बेचने का उपाय उन्हें सुझा दिया है कि सारे संस्थानों को किराये
पर उठा दो और मोटी रकम ले लो। किरायेदार प्रापर्टी खाली नहीं करेगा और इस तरह देश
के लाभ देने वाले संस्थान बिक जायेंगे।
शाम को मय पी ली,
सुबह को तौबा कर ली
रिन्द के रिन्द रहे
हाथ से जन्नत ना गई
रामभरोसे सवाल कर
रहा था कि कोई विभाग अगर नुकसान में चल रहा है तो प्राइवेट उसे क्यों खरीदेगा या
कहें कि क्यों किराये पर लेगा और अगर लाभ में है तो सरकार क्यों किराये पर दे रही
है? लगता है कि हाल यह होगा कि
माली आवत देख कर
पहुअन करी पुकार
फूले फूले चुन लिए
काल हमारी बार
सो फूले फूले चुन
लिए जायेंगे और कुम्हलाये, मुर्झाये बाकी रहेंगे जिन्हें सरकार औने पौने दामों पर
अपने यार दोस्तों को बेच देगी। रोचक है कि जिनको राहत इन्दौरी ने किरायेदर बतलाया
था, वे खुद प्रापर्टी को किराये पर उठा रहे हैं।
आज जो साहिबे मसनद
हैं कल नहीं होंगे
किरायेदार हैं, जाती
मकान थोड़ी है
पर, कुछ किरायेदार
ऐसे भी होते हैं जिनके खून में व्यापार होता है और वे किराये के मकान को भी अपने
बाप का हिन्दुस्तान समझ कर बेच देते हैं।
पुरानी फिल्म भाभी का एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था, जिसके बोल थे-
ओ, पिंजरे के पंछी
रे, तेर दरद ना जाने कोय
तूने तिनका तिनका
चुन कर, नगरी एक बसाई
बारिश में तेरी भीगी
पांखें, धूप में गरमी खाई
गम ना कर जो तेरी
मेहनत तेरे काम ना आई
अच्छा है कुछ ले
जाने से देकर ही कुछ जाना।
ये देश हुआ बेगाना।
देश को नीलामी पर
चढा दिया गया है।
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