व्यंग्य
विधानसभा चुनाव में
प्रधानमंत्री
दर्शक
किसी जमाने में जब किसान उजड़ कर महानगर की ओर पलायन कर जाता था तब उसकी दिशा
पूरब की ओर होती थी अर्थात कलकता की ओर, जहाँ के मिलों में उन्हें नौकरी मिल जाती
थी । यद्यपि मेहनताना इतना नहीं मिल पाता
था कि घर पर ठीक ठाक पैसे भेज सकें, इसलिए वे शर्म के मारे घर वालों से सम्पर्क
तोड़ लेते थे। मशहूर शायर राजेश रेड्डी का शे’र है-
लौट के जब शाम खाली हाथ घर जाता हूं मैं
मुस्करा देते हैं
बच्चे और मर जाता हूं मैं
घर के लोग समझते थे कि मर गये होंगे ,
किंतु ऐसी आशंकाओं को मुँह से नहीं निकाल पाते थे सो वे कहते थे कि बंगाल की
महिलाएं जादू जानती हैं और आदमी को मेड़ा [भेड़ का बच्चा] बना लेती हैं। शायद किसी
बंगालन ने जादू कर के बांध लिया होगा। ये बहाना तब भी रहा जब खुद बंगाल में भीषण
अकाल पड़ा और बंगाल का विभाजन हुआ।
इन दिनों जब सारी चीजें उल्टी पुल्टी हो रही हैं तब इस जुमले में भी बदलाव आ
गया है। अब बंगालिनें किसी को मेड़ा नहीं बनातीं अपितु उन्हीं के लोग मेड़ा बन बन कर
दूसरे के घरों में पलने लगे हैं। पुराने समय से दुनिया लालच और भय के सहारे हांकी
जाती रही है। स्वर्ग का लालच और नर्क का भय। अब भी कार्पोरेट जगत के पैसे और
सीबीआई के भय से सारे शारदा नारदा चिटफन्ड वाले मेड़े बनते जा रहे हैं और बंगालिन
का जादू उतरता जा रहा है। बेचारी ममता दीदी रोज यही देखती हैं कि आज कौन गया। उनका
चुनाव परिणाम जो भी आये, लेकिन वे हार चुकी हैं। वे जिन के सहारे युद्ध जीतने
निकली थीं वह फौज ही भाग निकली। त्रिपुरा में जब इनके सारे विधायक भाजपा में चले
गये थे तब अगर चिंता की होती तो आज ये दिन काहे को देखने को मिलते और माँ के सामने
ही क्यों मानुष मिट्टी में मिलते।
दीदी ने ‘भेड़िया आया’ वाली कहानी तो सुनी ही होगी जिसमें जब सचमुच में ही
भेड़िया आ गया तो उस झूठे बालक को बचाने के लिए कोई नहीं आया। इसी तरह वाममोर्चा
सरकार के खिलाफ जलूस निकालते समय कितनी बार उन्होंने सुरक्षा के लिए साथ चल रहे
इंस्पेक्टरों की उंगलियां चबा डाली थीं और जब उन्होंने परे किया था तो ‘मार डाला, मार
डाला’ कहते हुए गिर कर फ्रैक्चर की घोषणा करते हुए प्राइवेट अस्पताल में भरती हो
गयीं थीं। जब मुख्यमंत्री ने मेडिकल जांच के लिए कहा था तो भाग गयीं थीं। बड़े दिल
वाले ज्योति बसु उन्हें नौटंकी कह कर टाल देते थे। पर अब सामना कुटिल लोगों से है,
वे सचमुच का फ्रैक्चर देकर भी झूठा बता सकते हैं, और भेड़िया आया की छवि के कारण जब
सचमुच का भेड़िया आ गया है तो बचाने वाला कोई नहीं है।
दुनिया कह रही है कि भारत में लोकतंत्र आधा रह गया है, और सच ही कह रही है। जब
एक मुख्यमंत्री को हराने के लिए प्रधान मंत्री एड़ी [ईडी] चोटी का जोर लगा रहा हो,
जो निरपराध हैं वे जेल में सड़ रहे हों और जो घोषित अपराधी हैं उन्हें सजा देने के
लिए अदालत को गवाह, सबूत तो क्या अभियोजक तक नहीं मिल पा रहा हो तब लोकतंत्र को भी
खुद को पूरा कहने में शर्म तो आयेगी ही।
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