सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

व्यंग्य चुनाव की छटपटाहट

 

व्यंग्य

चुनाव की छटपटाहट

दर्शक

विचार के साकार देखने की घटना मुहब्बत के किस्सों में पायी जाती थी। हो सकता है अब भी पायी जाती हो किंतु अब मुहब्बत दूर दूर तक देखने को नहीं मिलती, अब तो केवल नफरत नफरत और नफरत ही देखने को मिलती है। पर डाक्टर कहते हैं कि यह एक बीमारी होती है जब कोई अपने प्रिय या प्रशंसक को साकार महसूस करने लागता है, उससे बातचीत करता है। मुन्नाभाई फिल्म में मुन्नाभाई गाँधीजी से बात करता है, उनसे प्रेरणा ग्रहण करता है। कृष्ण काव्य में भी जब विरहिणी गोपिका की माँ उससे कहती है कि यह सुई दीवार में खोंप दो ताकि खो ना जाये तो वह कहती है कि यहाँ कहाँ दीवार है ? यहाँ पर तो कृष्ण ही कृष्ण हैं, मैं उनमें सुई कैसे घोंप दूं।

चुनावी पार्टियों में सुपर पार्टी भाजपा का भी आजकल यही हाल हो गया है। उसे चारों ओर चुनव ही चुनाव नजर आ रहे हैं और मजे की बात तो यह है कि पश्चिम बंगाल में बुरी तरह मुँह की खाने के बाद तो वह और भी बौरा गयी है। उसे चुनाव में होती हुई हार के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आ रहा। दोष इंजन में है और उसने डिब्बे बदलने शुरू कर दिये हैं। शुरुआत उत्तराखण्ड से हुयी। पहले एक मुख्यमंत्री बदला, किंतु दूसरे ने सांस भी नहीं ले पायी थी, कुम्भ का हिसाब भी नहीं जोड़ पाया था कि उसे भी बदल दिया, तीसरा ला पटका। अब उसके पांव डगमगा रहे हैं कि जाने कब शतरंज के मोहरे की तरह कहाँ से उठा कर कहाँ रख दिया जाये। विधायक इतने मजबूर हैं कि मुँह पर मास्क के नीचे पट्टी बाँध कर रखते हैं कि कहीं आवाज ना निकल जाये। काम तो वैसे भी नहीं होता केवल अखबारों में विज्ञापन निकलवाने होते हैं कि यह कर दिया, वह कर दिया। इससे दोनों काम सध जाते हैं, एक ओर तो मुँह में टुकड़ा आ जाने से अखबार गुलाम हो जाते हैं तो दूसरी ओर आँखें मिचमिचाती हुई जनता सोचती है कि जब अखबार में विकास छप गया तो जरूर्‍ हुआ ही होगा, हमें ही नहीं दिखाई देता।

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कोलकता के फ्लाई ओवर पर खड़े दिखने की फोटो बनवा कर विज्ञापन निकलवा दिया कि जनता की आँखों में तो अयोध्या के मन्दिर की नींव खुदने की धूल पड़ी हुयी है, उसे क्या दिखायी देगा। पर क्या करें, ताड़ने वाले कयामत की नजर रखते हैं। उन्होंने न केवल झूठ पकड़ लिया अपितु यह भी पता लगा लिया कि फ्लाई ओवर कहाँ का है। ‘ अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरो’ की संस्कृति वालों ने ‘ न ब्रूयात सत्यम अप्रियम ‘ के पहले भाग का पालन शुरू कर दिया है। वैसे हार की सम्भावनाओं को देखते हुए इन मुख्यमंत्री को भी हटाने की तैयारी पूरी हो गयी थी किंतु उन्होंने याद दिला दी कि उन्हें तो मजबूरी में मुख्यमंत्री बनाया गया था। अब वे जायेंगे तो सरकार को साथ ले जायेंगे। जिस सरकार में दो दो उपमुख्यमंत्री बनाने पड़ते हों वहाँ सरकार की मजबूती स्वयं ही प्रकट हो जाती है। पिछड़ा वर्ग सम्हालो तो ब्राम्हण विदकते हैं और ब्राम्हण को काँग्रेस से आयात करो तो पिछड़ा वर्ग, दलित वर्ग की पार्टियां ब्राम्हण सम्मेलन करने लगती हैं। ब्राम्हण वैसे भी किसी एक पार्टी के भरोसे नहीं रहे।

दलबदल से कर्नाटक में बनी सरकार के ईमानदार मुख्यमंत्री येदुरप्पा को हटाया तो वे अपनी जति के लिंगायत को ही मुख्यमंत्री बनवाने पर अड गये और मनवा कर ही माने। गुजरात में रूपाणी जो ठीक से ना ही कोरोना में मरने वालों की लाशें गिन पाये और ना ही मरीजों को गिन पाये। और तो और वे अखबारों को भी नहीं साध सके, तो उन्हें दैनिक वेतनभोगी की तरह शाम तक हिसाब कर लेने को कहा गया व एक नया मिट्टी का माधो तलाश लिया गया।

फिराक साहब से क्षमा याचना सहित शे’र यूं होता है-

बहुत पहले से हम कदमों की आहट जान लेते हैं

तुझे ये पराजय, हम दूर से पहचान लेते हैं       

 

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