सोमवार, 16 मार्च 2015

व्यंग्य जहर बनाम जहर



व्यंग्य
जहर बनाम जहर
वीरेन्द्र जैन
       देश की राजनीति इन दिनों जहर उगलने में लगी है।
       पौराणिक कथाओं में देवता जहर को पचाते थे और राक्षस उसे बाँटते थे, पर आज जो नेता उसे फैलाने में लगे हैं, उनमें फर्क करना मुश्किल हो रहा है वे तो इसका विकेन्द्रीकरण कर रहे हैं। राहुल ने जयपुर के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान किसी सपने का वर्णन वाले अन्दाज़ में भावुक ढंग से कहा था कि रात में माँ मेरे कमरे में आयी थीं और उन्होंने कहा था कि सत्ता जहर है। उस समय सारी निगाहें और सारे कैमरे राहुल गान्धी के ऊपर केन्द्रित थे इसलिए किसी ने देख नहीं पाया कि मनमोहन सिंह उसी समय बाथरूम में जाकर मुँह में उंगलियां डालकर उल्टियां जैसा कुछ करने में लगे थे। वे सोच रहे होंगे कि क्या इसीलिए यह प्याला मुझे थमा दिया गया था। इसी तरह एक ममतामयी माँ ने सरकारी स्कूल के मास्टर से कहा था कि मेरा बेटा अगर कोई गलती करे तो उसे डाँटें नहीं अपितु उसके बगल वाले लड़के की बहुत तेज पिटाई कर दें तो वह डर जायेगा और सुधरने की कोशिश करेगा। ममता ऐसे ही हल तलाशती है।     
       उक्त अधिवेशन उसी राजस्थान में हो रहा था जहाँ मीराबाई हो चुकी हैं जिनकी कृष्णभक्ति से परेशान होकर उनके पति ने उन्हें जहर का प्याला भिजवाया था। इसके बारे में कहा जाता है कि उनकी भक्ति के प्रभाव में वह जहर का प्याला किसी पेय में बदल गया था। यही जहर किसी सन्देह का शिकार होकर बुन्देलखण्ड के लोकनायक हरदौल को भी उनके भाई द्वारा दिया गया था। हमारे देश में भाई-भाई के प्रेम की बहुत सारी गाथाएं गायी गयी हैं, पर भाई और भाभी के बीच प्रेम का सन्देह भर होने पर जहर की लहर आ जाती है। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई को आपस में भाई भाई बनाने के लिए खूब कोशिशें होती हैं पर बहनें बहनें बनाने की कोई कोशिश नहीं होती। एक समाजशास्त्री का कहना है कि अगर बहनें बनाने की जरा भी कोशिश हुयी होती तो ये भाई भाई वाला मसला हमेशा के लिए हल हो गया होता।
       कुछ दिनों पहले ही यह पता चला कि जहर की खेती भी होती है और ऐसे कृषक देश के प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में छप्पन इंच जैसी छाती फुलाये हाँफते हुये यहाँ से वहाँ दौड़ रहे हैं। यही छप्पन इंच की छाती वाले केरल में अल्पसंख्यक और भाषायी आयोग को जहर की खेती बता रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को ऐसी ही खेती के दौर में कृषि कर्मण पुरस्कार दुबारा मिला है।  
       देश में मिलावट का यह हाल है कि सत्ता के जहर को साम्प्रदायिकता के जहर से मिलाकर देखा जा रहा है। इसी मिलावट का असर यह भी हुआ कि इसी मिलावट से परेशान होकर एक व्यक्ति ने खुद ही जहर खा लिया और प्रातः काल चैन की नींद सोकर उठा क्योंकि जहर में मिलावट थी। तब से देश भर के लाखों किसान जहर की जगह फाँसी लगा कर आत्महत्या कर रहे हैं और हवालात में हवा के बिना लात खाकर दर्जनों हवालाती बाथरूम के रोशनदान से लटक कर अपनी जान दे रहे हैं। प्रदेश की एक पूर्व मुख्यमंत्री ने तो दुबारा मुख्यमंत्री पद न देने की दशा में जहर खा लेने के धमकी दी थी और जब उनकी पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता ने इस धमकी को प्रैस को लीक कर दिया था तो उन्होंने पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं की जो सार्वजनिक फज़ीहत की थी वो तो इतिहास ही बन चुकी है। साबरमती के कमाल कर देने वाले संत के लिए कवि प्रदीप लिखते हैं कि-
 तूने वतन की राह में सब कुछ लुटा दिया    
अमृत दिया सभी को मगर खुद जहर पिया
       कहा गया है कि विषस्य विष औषधिम अर्थात जहर ही जहर की औषधि होती है इसलिए जहर का युद्ध चल रहा है और पता नहीं चलता कि किसका विषवमन विष है और किसका औषधि! नईम जी कह गये हैं कि-
वो तो ये है कि आबो-दाना है, बरना ये घर कसाईखाना है
आप झटका, हलाल के कायल, जान तो मेरी लोगो जाना है

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