सोमवार, 16 मार्च 2015

व्यंग्य पीठ पर हाथ



व्यंग्य
पीठ पर हाथ
दर्शक 
मेरे एक मित्र अक्सर पूछा करते थे- भगवान ने पीठ किसलिए बनायी है? और फिर खुद ही उत्तर देते थे – इसलिए बनायी है कि किसी के पेट पर लात मत मारो, समझे। कवि रहीम ने मारपीट की बातें बहुत की हैं पर उन्होंने भी यह नहीं बताया कि भृगु ने हरि को कहाँ लात मारी थी। का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात। जरूर पीठ पर ही मारी होगी, क्योंकि मित्र के कथनानुसार उन्होंने ही पीठ बनायी है। अगर वे उनके पेट पर लात मारते तो देर सबेर उनकी पीठ पर भी लात पड़ती, क्योंकि इस लात चलाऊ जाति का पेट भी उन्हीं से पलता है जिन पर वे लातें चलाते रहते हैं। 
वे मित्र आज इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनकी कही बात याद आती है। वे अगर ज़िन्दा होते तो उनके स्वगत उत्तर से पूर्व ही मैं उनसे कहता कि पीठ के कुछ और भी उपयोग सामने आ रहे हैं, पीठ केवल लात मारने के ही काम नहीं आती अपितु हाथ रखने के काम भी आती है। कोई किसी भी पद पर हो पर पीठ पर हाथ जरूर रखवाये रहता है, प्रत्येक की पीठ पर किसी न किसी का हाथ है। बैठता पद पर है पर हाथ पीठ पर रखवाता है। जिन पीठों पर किसी का हाथ नहीं होता वे बोझा ढोने के काम आती हैं। या तो हाथ रखवाओ या बोझा ढोओ।  
अक्सर पट्ठों की पीठ पर उस्ताद का हाथ होता है, बशर्ते आदमी उल्लू का पट्ठा न हो। जिस पीठ पर उस्ताद हाथ रखते हैं उसी को शागिर्द के सफल होने पर प्रशंसा में ठोंकते भी हैं। कुछ अहसान फरामोश तो काम निकलने के बाद पीठ फेर लेते हैं। कई सरकारें पीठ पर हाथ नहीं रखतीं पर पीठ पर बिठा देती हैं। साहित्यकार पीठों पर बैठने के लिए लालायित रहते हैं। पीठ पर खुजली मचती है और कानून जिसके कि हाथ लम्बे बताये गये हैं, अपनी पीठ आप नहीं खुजा पाता। उसे भी दूसरे से ही खुजवाना पड़ती है। समझदार नौकरशाह किसी पर हाथ डालने से पहले जान लेते हैं कि उसकी पीठ पर किसका हाथ है। अगर किसी सत्तारूढ नेता की पीठ पर उसका हाथ होता है तो हाथ तो क्या वह निगाह भी नहीं डालता।
बुजुर्ग लौहपुरुष जी मेरी इस बात की पक्षधरता करेंगे कि छप्पन इंच की छाती ही नहीं वक्त जरूरत पीठ भी दिखाने के काम आने लगी है और जो बेमौके शहीद नहीं होना चाहते वे पीठ दिखा कर भाग जाते हैं। जो आँखें नहीं दिखा सकते, दाँत नहीं दिखा सकते, वे पीठ तो दिखा सकते हैं। पहले की माँएं अपने वीर सपूतों को युद्धभूमि में भेजते हुए कहती थीं कि बेटे पीठ दिखा कर मत आना। अबकी माँएं कहती हैं कि बेटे पीठ पर किसी का हाथ होना चाहिए, कोई ठीक ठाक सा हाथ देख कर रखवा लेना। आज अगर गिरधर कविराय होते तो इस पर भी एक वैसी ही बढिया कुण्डली रचते, जैसी उन्होंने तरुवर की छाँह में बैठने, लाठी को साथ में रखने, किन किन को विरोधी न बनाने की सूची आदि पर रची हैं।   
उद्योग जगत की पीठ पर कभी सत्तारूढ नेताओं का हाथ होता था, पर अब सत्तारूढ दल के नेताओं पर उद्योगपतियों का हाथ होता है। पीठ पर हाथ रख कर वे थथोल लेते हैं कि बुलैट प्रूफ जैकिट कितनी मोटी है।

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