सोमवार, 16 मार्च 2015

व्यंग्य खाता कहाँ है?



व्यंग्य
खाता कहाँ है?                                                    
दर्शक
       सरकार ने विदेशी बैंकों में भारतीय उद्योगपतियों, राजनेताओं के खातों पर अदालती अंकुश के दबाव में पूछा खाता कहाँ है?
-          वहीं जहाँ आप लोग खाते हैं। उन्होंने मुँह से पेट तक का इशारा किया।  
-          अरे भाई हम पूछ रहे हैं कि बैंक खाता कहाँ है? सरकार ने कहा
-          बैंक में। उन्होंने फिर उत्तर दिया
-          देश के बैंक में या विदेश के बैंक में?
-          हम विश्वबन्धुत्व वाले लोग हैं, चंचल लक्ष्मी को किसी बन्धन में बाँध कर रखना पसन्द नहीं करते। हिन्दी के एक कवि ने कहा है कि, पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होय! जगत के प्राचीनतम व्यक्ति की पत्नी चंचल तो होगी ही। यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ आती जाती रहती है। पता नहीं आज कहाँ है, कल कहाँ है। हुह रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कुओई जाने ना, हुह रे ताल..................। वे गाने लगे और सरकार उनकी उंगलियों पर नाचती रही। सरकारें बदलती रहीं पर अखण्ड नाच जारी रहा। नाचने वाले बदल गये पर ठुमका वही लगता रहा। एक दूसरे को शर्मिन्दा होने से बचाते रहे। वित्त और रक्षा मंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभाग एक ही मंत्री सम्हालता रहा ताकि खाता धारकों की रक्षा भी कर सके।
मध्यप्रदेश के एक पटवारी ने तो मुहावरे को यथार्थ में बदल दिया। होशंगाबाद के माखननगर के एक पटवारी को जब लोकायुक्त टीम ने चार हजार रुपये रिश्वत लेते हुये रंगे हाथों पकड़ा तो उसने रिश्वत के नोट मुँह में रखे और चबा गया। नोटों पर केमिकल लगा था इसलिए उसका मुँह काला नहीं हुआ अपितु जब मुँह धुलवाया गया तो वह लाल हो गया। लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल, लाली देखन में चली सो मैं भी हो गई लाल।
व्यापम प्रसिद्ध इसी मध्य प्रदेश में हवायें ही ऐसी चल रही हैं कि महिला पटवारी तक को रिश्वत लेना ही पड़ती है। इन्दौर में जब लोकायुक्त पुलिस ने एक महिला पटवारी को रिश्वत लेते हुए पकड़ा तो सरपंच-पति की तरह लेन देन के लिए साथ रहने वाला उसका पति भी साथ था और दोनों को रंगे हाथों पकड़ना पड़ा। हम तो डूबे हैं सनम तुम को भी ले डूबेंगे। होशंगाबाद के पटवारी ने तो चार हजार लिये थे पर इसने तो सत्तरह हजार लिये थे सो दोनों मिल कर भी नहीं चबा सकते थे, इसलिए चुपचाप स्वीकार कर लिया। पर इस दम्पत्ति ने यह भी कह दिया कि ये सब हमारे पेट में थोड़े ही जाने थे, हमें भी ऊपर पैसे देने पड़ते हैं। ऊपर वालों को और ऊपर और फिर और ऊपर, और ऊपर का उत्थान चल रहा है। अब लोकायुक्त अगर ऊपर वालों को पकड़ने लगें तो कितना ऊपर जायेंगे? उन्हें ऊपर थोड़े ही जाना है इसलिए सारा खेल नीचे वालों के साथ ही हो रहा है। एक चारागाह है जहाँ सब चरते चले जा रहे हैं।    
एक आयुर्वेदिक दवा कम्पनी वाले हजम करने की गोलियां भी बनाते हैं पर हजम नहीं कर पाये। उनका खाता सामने आ गया। अब समझ में आया कि एक दूसरा आयुर्वेदिक दवायें बेचने वाला क्यों खाताधारी का खाया पिया उगलवाना चाह रहा था। वैसे उगलवाने की दवा पहले वाला भी जानता है और अगर उसने प्रयोग कर दी तो चहुँ ओर उल्टियां ही उल्टियां नजर आयेंगीं।
असल मुसीबत तो उस जनता की है जो अपनी ज़िन्दगी रूपी बेटी व्याहने के लिए चाहती है कि लड़का खाते पीते घर का तो हो पर खाता पीता न हो। उसकी तलाश जारी है।
  

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