व्यंग्य
चुनाव के मेले में
सरकस
दर्शक
राजकपूर की एक
आत्मकथात्मक फिल्म आयी थी - मेरा नाम जोकर। इस फिल्म में नीरज का एक गीत था जिसमें
कहा गया था कि ये दुनिया एक सरकस है,
और यहाँ सरकस में,
बड़े को भी, छोटे को
भी, दुबले को भी मोटे को भी, खरे को भी खोटे को भी
ऊपर से नीचे को,
नीचे से ऊपर को आना जाना पड़ता है
और रिंग मास्टर के
कोड़े पर
कोड़ा जो भूख है,
कोड़ा जो पैसा है, कोड़ा जो किस्मत है
तरह तरह नाच के
दिखाना यहाँ पड़ता है
हीरो से जोकर बन
जाना पड़ता है....................
संसद के ताजा चुनावी
मेले में तरह तरह की गतिविधियां चल रही हैं जिनमें भाजपा के सरकस का बड़ा शोर है।
इस सरकस में मोदी को रिंगमास्टर बना दिया गया है और वे हंटर फटकार-फटकार कर सरकस
के सारे जानवरों को डरा रहे हैं। वे सरकस के पूरे घेरे में इधर से उधर घूम रहे
हैं। डर के मारे पुराने लौह पुरुष पूंछ सिकोड़ कर स्टूल पर बैठ चुके हैं। पशु
चिकित्सक की डिग्री रखने वाले संघ प्रमुख ने संजय जोशी को अनचाहे ही पिंजरे से
बाहर कर दिया है। अब वे कहाँ होंगे यह तो कोई हिडिन कैमरा ही बता सकेगा।
सरकस में मनोरंजन का पूरा पूरा इंतज़ाम चल
रहा है। प्रसिद्ध नृत्यांगना से कह दिया है कि वरिष्ठों के सदन में मुँह दिखाई
करते करते और लिखे हुए डायलाग बोलते बोलते वर्षों गुजर गये अब तो मुँह खोलना सीख
लो और जाट पत्नी के नाम पर जाटों की सीट से चुनाव लड़ कर देख लो। अब यह बात अलग है
कि जिस जाट की धर्मपत्नी के रूप में उन्हें चुनाव लड़वाया जा रहा है उस धर्मेन्द्र
ने धर्म के नाम पर शपथ लेकर लोकसभा में जाते समय अपनी वैवाहिक स्थिति के रूप में
उनका कोई उल्लेख नहीं किया हो और न ही अपनी सम्पत्ति के विवरण में पत्नी की
सम्पत्ति के रूप में उनकी सम्पत्ति को दर्शाया हो। वैसे भाजपा में यह कोई अजीब बात
नहीं है क्योंकि रिंग मास्टर खुद भी ऐसा ही करता रहा है। जोकरों की जरूरत को पूरा
करने की गारण्टी है। रिंग मास्टर की ही तरह हत्या के आरोप से मुक्त होने का अदालती
प्रमाणपत्र प्राप्त भूतपूर्व क्रिकेट खिलाड़ी लाफ्टर चैलेंज वाले सिद्धू तो पहले से
ही थे जिन्होंने अपने छा गये गुरू के लिए सीट छोड़ दी है ऊपर से कभी छप्पन इंच के
सीने को राक्षस का सीना बतलाने वाले राजू श्रीवास्तव भी समाजवादी पार्टी से टिकिट
वंचित हो कर सीधे सरकस की रिंग में आ गिरे हैं। कोई कमी नहीं रह जाये इसलिए परेश
रावल को भी अमेरिका में शूटिंग बन्द करवा कर बुलवा लिया गया है। कांग्रेस के पास
नगमा और आम आदमी पार्टी के पास गुल पनाग हैं तो सरकस पार्टी ने भी चरित्र
अभिनेत्री किरण खेर को उतार दिया है। शत्रुघ्न सिन्हा का टिकिट भी इस उम्मीद में
नहीं काट सके कि बेटी सोनाक्षी सिन्हा की लोकप्रियता का कुछ तो असर होगा। मनोज
तिवारी के साथ विनोद खन्ना को भी अंतिम समय में बुलवा लिया गया है। कथित
सांस्कृतिक संगठन के निर्देशन में काम करने का दावा करने वाली इस पार्टी के पास
विचार और साहित्य से जुड़ी किसी हस्ती की कमी महसूस नहीं होती क्योंकि सरकस दिमाग
से नहीं देह और ऊटपटांग हरकतों वाले जोकरों के सहारे जानवरों से ही चलता है।
कभी देश में वनस्पति घी आया था जो डालडा के
लोकप्रिय ब्रांड नाम के कारण डालडा कहलाया था और देशी घी की तुलना में असली और
नकली घी के रूप में पहचाना जाने लगा था। भाजपा भी इसी असली और नकली के रूप में भेद
करती रहती है। जब धर्मनिरपेक्षता का सवाल चरम पर था तो उन्होंने कहना शुरू किया था
कि हम ही असली धर्मनिरपेक्ष हैं और दूसरे नकली धर्म निरपेक्ष हैं, फिर कल्याण सिंह
पहली बार बाहर निकले तो उन्होंने खुद को असली भाजपा कहा, और बाद में उमा भारती ने
जब अपनी पार्टी बनायी तो उसे असली भाजपा कहा, मदनलाल खुराना और येदुरप्पा ने भी
यही शब्द दुहराये थे तो शंकर सिंह बघेला और केशुभाई पटेल ने भी। अब जसवंत सिंह,
लालमुनि चौबे और हरेन पाठक भी यही कह रहे हैं। हद तो यह है कि टिकिट मिल जाने के
बाद सन्दिग्ध जन्मतिथि वाले सेना के अधिकारी हों या चुनौती छोड़ कर भागे पुलिस
अधिकारी हों अपने को असली भाजपा बताने लगे हैं।
सरकस
में बड़े को भी छोटे को भी दुबले को भी मोटे को भी बनारस से कानपुर, गाज़ियाबाद से
लखनऊ और भोपाल से गान्धीनगर आना जाना पड़ता है, हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है। पर
प्यारे ये सरकस तीन घंटे का ही शो है और उसके बाद खाली खाली कुर्सियों और खाली
खाली पिंजरे के अलावा कुछ भी नहीं रहता है
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