व्यंग्य
मल संशय और साध्वी
चिंतन
दर्शक
उनके
साथ न गुरु खड़े हैं न गोबिंद। आखिर किससे पूछें! साध्वी परेशान हैं।
सामने
कुछ कोमल कोमल पड़ा हुआ है, जो कमल तो नहीं है, जरूर किसी मनुष्य का मल ही होगा, यह
तय है। कमल का अपना स्वरूप होता है गन्ध होती है, पर इसमें से तो दुर्गन्ध उठ रही
है।
जिज्ञासाओं
का भी एक स्तर होता है। साध्वी की जिज्ञासा राष्ट्रीय स्तर की है। यह मल देश के
लिए समस्या खड़ी कर सकता है। अगर यह समस्या किसी व्यक्ति के स्तर की होती कि इससे मुन्नी
के बीमार पड़ सकने की सम्भावना होती तो अभिनेत्री विद्या बालन एडवांस में गोलियां
देकर सुलझा सकती थीं पर अब यह मामला गम्भीर हो गया है। देश की एक केन्द्रीय मंत्री
ने कह दिया है कि नास्तिकों के मल से बाढ आती है। आस्तिकों के मल से क्या होता है
इसका उद्घाटन होना अभी शेष है। शायद उससे बीमारी भी नहीं फैलती होगी तभी तो उत्तर
प्रदेश में लाखों लोगों ने घर में शौचालय बनवाने के लिए मिला अनुदान अपने परिवार
की पेट की भूख मिटाने में लगा दिया और पेट भर कर खुले में शौच करने जाते रहे।
साध्वी
के सामने ज्वलंत प्रश्न है, वे जानना चाहती हैं कि यह मल किसका है? आस्तिक का या
नास्तिक का? कौन बतायेगा? क्या बाढ आने न आने के परिणाम तक प्रतीक्षा करना पड़ेगी?
दूसरा कोई टेस्ट नहीं है? मलेच्छों के आने के बाद हमारे देश का प्राचीन विज्ञान
नष्ट हो गया, बरना कोई विधि होती। बत्रा जी की किताबें जो गुजरात के स्कूलों में
लगा दी गयी हैं, और मध्य प्रदेश में लगायी जाने वाली हैं, में बताया गया है कि
पहले हमारे यहाँ मोटर कारें बनती थीं क्योंकि अनाश्व रथ की चर्चा पुराणों में आयी
है। हवाई जहाज और टीवी होने के बारे में तो पहले ही विश्वास रहा है क्योंकि संजय
द्वारा महाभारत के युद्ध का आँखों देखा हाल और पुष्पक विमान के बारे में ग्रंथों
में लिखा है। आस्तिकों और नास्तिकों के मल परीक्षण की विधि भी जरूर किसी ग्रंथ में
छुपी हुयी होगी। मंत्रीजी गलत नहीं हो सकतीं। हो सकता है कि बत्रा जी की अगली किसी
किताब में मिल जाये। पहले इस जगत गुरु देश में सब कुछ था, हमें देश को वहीं ले
जाना है।
साध्वी
का चिंतन जारी है- रेल दुर्घटनाएं भी शायद इसीलिए बढ रही हैं क्योंकि रेल के
डिब्बों में अस्तिकों और नास्तिकों के शौचालयों में भेद नहीं किया गया है और दोनों
ही समान रूप से उसी में आते जाते रहते हैं। हाँ एक बात साध्वी की समझ में नहीं आती
कि ये नास्तिक तीर्थस्थलों में क्यों जाते हैं? क्या ये बाढ लाने के लिए ही जाते
हैं। इनका जाना बन्द करवा दिया जाये तो बाढ आना बन्द हो जाये। मध्य प्रदेश की एक
विधायक ने तो गरबा में प्रवेश रोकने की माँग कर ही दी है। पहले साध्वी इस तरह की
बातें सार्वजनिक रूप में करने से कतराती थी, पर जब से देश के प्रधानमंत्री ने
देवालयों के पहले शौचालयों के बाद लाल किले की एतिहासिक प्राचीर से देश को
सम्बोधित कर दिया तो वह चिंतन करने लगी।
साध्वी
की चिंताएं बढती जा रही हैं और गुरु व गोबिन्द कोई भी नहीं है जो बता सके कि हल
क्या है?
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