व्यंग्य
शांतता, पप्पू
चिंतनरत आहे
दर्शक
कभी
कभी पुराने लोगों की बातें भी अचानक असर कर जाती हैं। प्राचीन कवि कह गये हैं-
बिना विचारे जो करे
सो पाछे पछताय
काम बिगारे आपनौ, जग
में होत हँसाय
पप्पू
के दिमाग में एक रात अचानक ये पंक्तियां कौंध गयीं और उसे लगा कि उसकी असफलता के
पीछे शायद यही कारण है कि उसने विचार नहीं किया। अगर बाई द वे कभी कुछ करने का
अवसर आ गया तो तो चिंतन कहाँ हैं। फिर वह सो नहीं सका। उसे लगा कि चिंतन करना
चाहिए। अब सवाल था कि चिंतन कैसे करना चाहिए, काहे का करना चाहिए, किस समय करना
चाहिए, कितना करना चाहिए, कब करना चाहिए, कहाँ करना चाहिए........? उसे चिंतन से
सम्बन्धित ढेर सारे सवालों ने चिंतन में डाल दिया।
चिंतन में
मुद्रा की भी बड़ी भूमिका होती है। मैं बता दूं कि यहाँ मुद्रा से आशय स्वर्ण
मुद्राओं वाली मुद्राओं से नहीं है। उसे अपने पिता के नाना का ख्याल आया जिनके ढेर
सारे फोटो उसने चिंतन वाली मुद्रा में ही देखे थे। वे तीन उंगलियां मोड़े कुहनी को
मेज पर टिका कर एक खड़ी उंगली को गाल पर टिकाये चिंतन मुद्रा में नजर आ रहे थे। कुछ
लेखकों के चित्रों का भी खयाल आया जो ऊपर की ओर देखते हुए चिंतन रत थे, गोया ऊपर
वाले से सीधे साक्षात्कार कर रहे हों या सोच रहे हों कि कहीं छत तो नहीं गिर
जायेगी।
कुछ
साधू-सन्यासी चिंतन करने के लिए हिमालय की ओर जाते थे। मुझे लगता है कि पहाड़ पर
चिंतन करने का कारण अगर ठंडक में मच्छरों का कम होना नहीं होता होगा तो यह भी हो
सकता होगा कि वहाँ देवदार वृक्षों की तरह ऊंचे ऊंचे विचार ही आते होंगे। हो सकता
है कि सादा जीवन उच्च विचार जैसे मुहावरे का जन्म भी ऐसे ही उच्च स्थल पर चिंतन रत
विचारवान लोगों को देख कर हुआ होगा। हिमालय की ओर न जाकर चिंतन करने वालों के पास
हमेशा डीएमके वालों जैसे विचार ही आते हैं।
पप्पू,
राजकुमार सिद्दार्थ की तरह बिना बताये चिंतन के लिए निकल पड़े क्योंकि यशोधरा की
तरह कोई यह कहने वाला भी नहीं था कि- सखि वे मुझ से कह कर जाते। सो उन्होंने किसी
से नहीं कहा। उनके जिन अनुयायियों को कभी यह चिंता नहीं हुयी थी कि उनका नेता बिना
चिंतन के ही नेतृत्व करने में जुता हुआ है वे तक परेशान होने लगे। वे जानते हैं कि
उन्हें तो बस एक मूर्ति की जरूरत होती है जिसकी प्रतिष्ठा करके वे अपने मन्दिर में
स्थापित कर दें। मूर्ति अगर चिंतन करने लगे तो उनका चिंतित होना तो बनता है। मूर्ति
सामने होती तो कहते कि अपको चिंतन- विंतन करने की जरूरत नहीं वो तो हम सब कर
लेंगे, आप तो विराजे रहो।
पप्पू
कहाँ पर चिंतन कर रहे हैं इसका पता तो लगता है कि सुब्रम्ह्यम स्वामी को भी नहीं
लग पाया जिन्हें सुनन्दा पुष्कर की मौत से लेकर दुनिया के सारे रहस्यों को पता
होता है। चिंतन की यही तो कला होती है कि आदमी अचानक ज्ञान से भरा हुआ प्रकट हो और
मैदान में आकर धमाका कर दे। इसी लिए पुराने चिंतकों ने इसे रहस्य कहा है, और रहस्य
रखा है। सच भी है अगर आदमी भीड़ भाड़ में चिंतन करने लगे तो क्या खाक चिंतन कर
पायेगा बस भाड़ ही झौंकता रहेगा। लोग तो सोते हुए आदमी से भी पूछते हैं- भैय्या सो
रहे हो क्या? और जब वह उत्तर देता है- हाँ, तो कह कर चले जाते हैं कि अच्छा है
सोओ, सोओ। अगर टोकने टाकने वाले हों तो चिंतन सम्भव होता ही नहीं है। कुछ तो ऐसे
कर्मठ सिंह होते हैं जो हर विचार पर एक ही बात कहते हैं कि यह तो ठीक है, पर किया
क्या? ऐसे चिंतन विरोधियों से दूर जाने का सोच अच्छा है।
करो पप्पू करो खूब
चिंतन करो।
दर्दमन्दाने मोहब्बत
क्या करें
रोने धोने से भी
आखिर जाएं क्या
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