मंगलवार, 17 मार्च 2015

व्यंग्य एक नयी गरीबी उन्मूलन योजना



व्यंग्य
एक नयी गरीबी उन्मूलन योजना
वीरेन्द्र जैन
       जो कोई नेता नहीं कर सका वह योजना मेरे पास है। इसलिए मेरी बात को ध्यान से सुनिये। सर्व धर्म परित्याज मामेकं शरणं ब्रज की तरह आप मेरी शरण में आ जाइए आपकी गरीबी दूर करने का वादा मेरा है।
       आपने वह कहानी तो जरूर सुनी होगी कि जब एक आदमी अपनी गरीबी से तंग आकर किसी पैसे वाले के पास मांगने गया और अपनी हीनता का रोना रोने लगा तो उसने उससे पहले एक हाथ बेच देने को कहा, पर उसके नकार के बाद एक टाँग देने को कहा, फिर आँख, उंगली आदि पर उतरा। जब उसने किसी अंग पर भी मंजूरी नहीं दी तो उसने कहा कि तुम अपने आप को गरीब कहते हो पर तुम्हारे पास तो ईश्वर की दी हुयी इतनी कीमतें चीजें हैं तुम गरीब कहाँ से हो।
       दरअसल मैं भी यही कहना चाहता हूं कि किसी गरीब को अपने अंग बेचने की कोई जरूरत नहीं जब तक उसके पास ऐसी चीज है जो उसके किसी काम नहीं आ रही। वह चीज है धर्म। यह अमूल्य वस्तु उसे पैदा होते ही बिना कुछ चुकाये दे दी जाती है। आज दुनिया के हर धार्मिक संस्थान के पास अटूट दौलत के खज़ाने भरे हुए हैं, और वे सब दूसरे के धर्मों से भर्ती करने के लिए फिर रहे हैं। लाउडस्पीकर लगा लगा कर अपने धर्म की प्रार्थनाएं, उपदेश पिलाये जा रहे हैं। शिक्षा की डिग्रियां लेने के लिए जब लाखों रुपये लग रहे हैं तब धर्मों के भोंपू मुफ्त ही में ज्ञान लुटाये जा रहे हैं ताकि कोई तो फँसे। मैंने पूछ कर देखा है कि ये इतना तेज लाउडस्पीकर क्यों चलाते हैं जबकि हजारों लोगों को तकलीफ होती है, तो वे नाराज होते हुए बोले धर्म की प्रभावना के लिए। मैं भागते भागते उनसे कह आया था कि इससे क्या कोई फँसा आज तक?
आप फँस जाइए। हमारे देश में यह नागरिकों का अधिकार है कि वे जब तक चाहें, चाहे जिस धर्म का पालन करें, और जब मन हो इन लाउडस्पीकरों के प्रभाव में अपना धर्म बदल लें। इन लाउडस्पीकरों के लिए तो लोग दंगा कराने को तैयार हैं, भले ही किसी ने उनके प्रभाव का अध्य्यन नहीं किया हो। हमारे धार्मिक लोग तो इतने विश्वासी होते हैं कि अगर दो रुपये के सिक्के पर बना कोई निशान क्रास जैसा दिखता हो तो कहने लगते हैं कि यह ईसाई बनाने का षड़यंत्र है।    
       इस दुनिया में इतने पंथ हैं कि हर छह महीने में उचित समझौते पर अपनी आस्थाएं बदलते रहने से गरीबी का बाप भी परेशान नहीं कर सकता। जब अमीर लोग लूट लूट कर धार्मिक संस्थानों के खजाने को भरते रहते हैं तो उनको खाली करवाने वाला भी तो कोई चाहिए। उस धर्म में क्या रहना जो आपकी गरीबी दूर नहीं कर सकता। जिसे अपने धर्म में रखना हो वो हमारी गरीबी दूर करने का चमत्कार करके दिखाये। ये बाज़ारवाद का ज़माना है, जब डिमांड सामने है तो जो रेडीमेड माल तुम्हारे पास है उसे सप्लाई करो और तुम फिर भी खाली नहीं होगे क्योंकि तुम्हें बदले में दूसरा माल बिल्कुल मुफ्त मिल रहा है। उसे पालिये..... जी हाँ धर्म और पशुओं के लिए इसी क्रिया का प्रयोग होता है। छह महीने बाद जब परिन्दा बड़ा हो जाये तो फिर बाज़ार हाजिर है।
       याद रखो कि जब तक दुनिया में मूर्ख ज़िन्दा हैं, समझदार भूखे नहीं मर सकते। अरे हाथ पाँव फेफड़ा जिगर गुर्दा से वंचित हो जाओगे तो फिर नहीं मिलेगा, पर धर्म की धर्मशाला तो हमेशा खुली हुयी है। आखिरी वक्त में जो चाहो सो हो सकते हो, बस एक महीने का नोटिस देने की गुंजाइश होनी चाहिए- रिंद के रिन्द रहे हाथ से ज़न्नत न गयी। नेताओं से कुछ तो सीखो जो सुख लेने के लिए कभी भी परिवर्तन से पीछे नहीं रहते। याद है कि एक राजिनीतिक दल का तो नारा ही था – पोरिवोर्तन। अब सीबीआई खोल खोल कर दिखा रही है कि उन्होंने कैसा –पोरिवोर्तन- किया।   
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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