शुक्रवार, 13 मार्च 2015

व्यंग्य बाप और बापुओं पर विपदा का वक्त



व्यंग्य
बाप और बापुओं पर विपदा का वक्त
दर्शक 

हमारे यहाँ कभी कहा गया था -
मनुष बली नहिं होत है, समय होत बलवान
भीलन लूटी गोपिका, वे हि अर्जुन वे हि बान
       अगर समय के इस महत्व को सच माना जाये तो कहना पड़ेगा कि इन दिनों बाप और बापुओं पर भीषण संकट छाया हुआ है। गुजरात के डीजीपी बंजारा मोदी को बाप मानते हुए पिछले पाँच साल से इस उम्मीद में जेल में दाढी बढा कर उसे मेंहदी से रंग रहे थे कि एक दिन तो ऐसा आयेगा जब उनके बाप के दिन फिरेंगे और उन्हें किसी नये एनकाउंटर की ज़िम्मेवारी मिलेगी। पर क्या पता था कि यह बाप सौतेले बाप जैसा निकलेगा। आखिर थक हार कर उन्होंने डीजीपी जेल अर्थात जेल में डीजीपी के पद से त्याग पत्र दे दिया।
ये ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहि नाच नचायो
सफेद दाढी ने काली दाढी को तो जेल क्या प्रदेश से ही बाहर कर दिया पर मेंहदी रंगी लाल दाढी को जेल में ही सड़ने के लिए छोड़ दिया। सो उसने भी कह दिया कि आज तक तो तुझे बाप मानते थे पर अब तुझे बाप मानने से मुक्त किया। अब तुझे पता लगेगा कि ‘रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं’।
       परिणाम यह हुआ कि बाप ने भी घबरा कर प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी बनने का सपना देखने से तौबा कर ली। क्या करते जब –
 जिधर की सिम्त मिरे दोस्तों की बैठक थी, उसी तरफ से मिरे सेहन में पत्थर आये।
बंजारा बाप के मामले में भक्त प्रह्लाद बन गये और बाप को चीर फाड़ के घुटने वाली आपरेशन टेबिल पर ला पटका। प्रतीक्षा है कि कोई नरसिंह न सही सिंह नर ही बेटे को न्याय दिला दे।
       संकट बापों के साथ ही नहीं बापुओं के ऊपर भी आ गया। अफवाह तो यह भी है कि ऊपर से गान्धीजी तक ने देश की जनता से विनती की है फिलहाल मुझे बापू की जगह केवल राष्ट्रपिता के नाम से पुकारा जाये। पता नहीं जब गान्धीजी जेल जाते थे तब जेल के मच्छर उन पर कृपालु क्यों थे क्योंकि उन्होंने कभी मच्छरों की शिकायत नहीं की पर आज के बापू तो जेल में मच्छरों के मारे परेशान हो गये। उन्होंने सत्य के साथ प्रयोग किये थे पर ये झूठ के साथ प्रयोग कर रहे हैं। जो कहते हैं कि वे मात्र प्रवचनकर्ता नहीं हैं, उनसे तो भगवान बुलवाता है उनके झूठ उस भगवान को भी झूठा होने की सच्चाई प्रमाणित कर रहे हैं जो सत्य कहलाता है।  वे सोचते थे कि जेलर के भी बाप होंगे सो अपने खाने का मीनू खुद तय करने लगे थे। जो आदमी अपने भक्तों को करोड़ों की दवायें मँहगे दामों में खपाता हो वह अपने को तरह तरह की बीमारियों से पीड़ित बता कर अपने मन पसन्द की महिला वैद्य को बुलाने की माँग रख रहा है पर डाक्टर कह रहे हैं कि उनकी सारी बीमारियां उम्र के कारण होने वाली स्वाभाविक बीमारियां हैं। बापू गरीब घर में होते तो बच्चे कहते कि दवा दारू छोड़ो और भगवान का नाम लो।
सियहबख्ती में ग़ालिब कौन किसका साथ देता है
कि तारीकी में साया भी ज़ुदा रहता है इंसां से
ऐसे खराब बख्त में में उनकी प्रबन्धक उस शिल्पी ने जिसे उन्होंने दो दो मकान दिलवाये थे कह दिया कि में तो उन्हें जानती तक नहीं।
मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं
यूं जा रहे हैं जैसे हमें जानते नहीं     

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