मंगलवार, 17 मार्च 2015

व्यंग्य मैं मैं और सिर्फ मैं अर्थात बकरी



व्यंग्य
मैं मैं और सिर्फ मैं अर्थात बकरी
दर्शक
आत्ममुग्धता की कोई सीमा होती है। पर नरेन्द्र मोदी के लिए कोई सीमा नहीं। भोपाल के एक प्रसिद्ध शायर का शे’र है-
खुदा मुझको ऐसी खुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
पर मोदी जी ने यह शे’र नहीं सुना। सुना भी होगा तो अमित शाह से कहा होगा कि या तो शायर का इंतजाम करा दो या खुदा का। ये कैसे शे’र लिखता है! अरे आदमी जब नरेन्द्र मोदी हो जाता है तो उसे अपने सिवा कुछ भी दिखाई देना बन्द हो जाता है। वह जो कपड़े पहिनता है उस पर भी अपना ही नाम लिखा होता है। पता चला है कि ऐसे व्यक्ति घर की सारी रामनामियां भी बर्तन बेचने वालियों को देकर बर्तन खरीद लेते हैं और उन पर भी अपना नाम खुदवा लेते हैं। आखिर वे ऐसे कपड़े क्यों ओढें जिन पर किसी और का नाम लिखा हो। सुना है हुस्नी मुबारक भी ऐसे ही कपड़े पहिनते थे जिनकी धारियों पर उन्हीं का नाम लिखा होता था। सारे तानाशाहों के शौक एक जैसे होते हैं, और अंत भी। ऐसा आदमी किसी की शोकसभा तक में जाना पसन्द नहीं करता क्योंकि वहाँ सब केवल मृतक के बारे में बातें कर रहे होते हैं।
किसी भी तानाशाह को चित्र प्रदर्शनी में जाना पसन्द नहीं आता वह सिर्फ आइना देखना पसन्द करता है और जैसी कि एक घटना है कि जब शकील बदाँयुनी ने लिखा कि-
दीवाना बना देगी तुझको तिरी तनहाई
न मिल किसी से लेकिन आइना तो देखा कर
तो हसरत जयपुरी ने लिखा था कि-
आइना भी उन पै शैदा हो गया
एक दुश्मन और पैदा हो गया
आत्ममुग्ध लोग कई बार तो अपने अक्स को भी अपने बराबर मानने को तैयार नहीं होते। सारे पोस्टरों से अटल, अडवाणी, सब गायब केवल एक चेहरा एक नाम। चारों ओर सिर्फ बौने बौने और बौने। लोगों ने अपने जूतों की एड़ियां निकलवा दीं। जिनके बाल खड़े होते थे उनने खोपड़ियां राजनाथ सिंह की तरह सफाचट करवा लीं।
जरा कुछ और अपना कद तराशो
बहुत नीची यहाँ ऊँचाइयां हैं
बुन्देली में एक कहावत है जिसका अर्थ यह निकलता है कि अगर ओछी प्रवृत्ति के किसी व्यक्ति के पास लोटे जैसी साधारण सी उपलब्धि भी हो जाती है तो वह उसके प्रदर्शन के लिए बार बार शौच जाने का प्रयास करता है ताकि लोगों को अपनी उस उपलाब्धि को दर्शा सके। जाहिर है कि यह कहावत उस समय की है जब घर घर शौचालय बनवाओ का अभियान नहीं चला था ये बात और है कि इस अभियान के चल जाने के बाद भी लोग जाते तो वहीं हैं जहाँ उनके बाप दादे जाते रहे थे। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने अगर दो बार कपड़े बदले तो मोदी ने तीन बार बदले और एक से एक चटक रंग के पहिने। स्कूल के अध्यापक भले ही उनके पद को – परिधान मंत्री- में बदल  जाने को वर्तनी की गलती मानें, पर मोदी तो जादूगरों के वाटर आफ इंडिया की तर्ज पर हर आइटम के बाद कपड़े बदलने का कार्यक्रम कर डालते हैं। प्रोटोकाल जाये तेल लेने, गणतंत्र दिवस की परेड में जब राष्ट्रपति परेड से सलामी लेते हैं तो मोदी जी भी सलामी लेने लगते हैं। हवाई अड्डे पर अमेरिका के राष्ट्रपति को लेने पहुँच जाते हैं, उनके लिए चाय बनाते हैं, पता नहीं चला कि उन्हें हवाई अड्डे पर देखकर सीड़ियों से उतरते हुए ओबामा ने मिशेल से ऐसा क्या कहा था कि बालों से ढके उनके चेहरे से मुस्कराहट दूर तक फैल गयी थी।
गाँधीजी अब नहीं हैं किंतु उनकी बकरियां अब जगह जगह चर रही हैं।  
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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