शुक्रवार, 13 मार्च 2015

व्यंग्य गाँधीजी के सपने को पूरा करने का संकल्प



व्यंग्य
गाँधीजी के सपने को पूरा करने का संकल्प
दर्शक
       रामभरोसे के परिवार में डिलीवरी होना थी, सो ‘महाजनो गतेन तेन पंथः’ के आदर्श पर चल उसी राह पर चला जिस पर महाजन चल रहे हैं। आजकल के महाजनों में परम्परा और आधुनिकता का अज़ब सा मेल देखने को मिलता है। ये लोग पंडितों से महूर्त निकलवाकर उचित समय पर डाक्टरों से सीजेरियन डिलीवरी करवा रहे हैं ताकि उनकी संतानों का भविष्य और उनका इहलोक व परलोक सुधर जाये।
       जब मैंने उसकी इस बात का मजाक बनाया तो वह कहने लगा है कि यह कोई नई बात नहीं है। किसी विद्वान जैसी मुद्रा बनाकर उसने महाभारत का दृष्टांत देते हुए बताया कि जब युद्ध में भीष्म पितामह तीरों से छिद कर शरशैया पर लेटे हुए थे और तकिये की माँग कर रहे थे तब अर्जुन ने तीरों से ही तकिया लगा कर उनको आराम दिया था। भीष्म उस समय मरने के लिए उचित महूर्त हेतु सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब मृत्यु के लिए लोग उचित समय की व्यवस्था कर सकते हैं तो जन्म के लिए क्यों नहीं की जा सकती:
       उस दिन राम भरोसे ने मुझे निरुत्तर कर दिया था।
       लगता है कि ऐसा ही महूर्त भाजपा ने गान्धीजी की अंत्तिम इच्छा को पूरा करने के लिए निकलवाया है और शायद वे उनकी मृत्यु के गत छह दशकों से उचित महूर्त की प्रतीक्षा कर रहे थे। लगता है गत दिनों से भाजपा के नरेन्द्रों के सपनों में गाँधीजी तेजी से प्रवेश कर रहे हैं और अपने सच्चे सपूतों को अपनी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए कुरेद रहे हैं। उनके अनुसार यह अंतिम इच्छा कांग्रेस को खत्म करने की है, जो उनके वैधानिक वारिसों ने पूरी नहीं की सो वे अपने को शर शैया देने वालों से ही तकिया माँगने चले आये।
       भाजपा धर्म के कन्धों पर चल कर सत्ता तक पहुँचने का सपना देखने वाली पार्टी है सो उचित महूर्त का इंतजार करती है बरना गान्धीजी की अंतिम इच्छा पूरी करने के अवसर तो सन 1967 से शुरू हो गये थे, पर महूर्त सही न होने के कारण हर बार इन्होंने धूल चाटी। 1977 में जब कांग्रेस के बड़े बड़े महारथी खेत रहे थे और पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार के रूप में जनता पार्टी सत्ता में आयी थी तब इन्हीं की दुहरी सदस्यता के कारण ही जनता पार्टी का पतन हुआ था और कांग्रेस फीनिक्स पक्षी की तरह फिर से राख में से जीवित हो गयी थी। 1989 में जब वीपी सिंह ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था तब भी शायद गलत महूर्त के कारण इन्होंने कमण्डल थाम लिया था और नई आर्थिक नीतियों के टैंक में घुस कर जनता को रोंदती हुयी कांग्रेस फिर सत्ता पर सवार हो गयी थी। फिर देवगौड़ा की सरकार आयी, गुजराल की सरकार आयी और यहाँ तक कि कवि ह्रदय अटलबिहारी की सरकार भी लम्बे समय तक खिची पर किसी को गाँधीजी की अंतिम इच्छा का सपना नहीं आया। हद तो तब हो गयी जब फील गुड कराने वाली इनकी सरकार अपने कथित स्वर्ण युग के साथ कांग्रेस के सामने ही औंधे मुँह गिर गयी। किसी सीमेंट के हाथी की तरह एनडीए चकनाकूर होकर – दिल के टुकड़ों की तरह कोई यहाँ गिरा, कोई वहाँ गिरा- हो गया।
       युद्ध के दौरान एक सैनिक अपने कमान्डर के सामने उपस्थित हुआ और सेल्यूट मार कर बोला- सर मैं दुश्मन के सिपाही का हाथ काट कर लाया हूं।
                शाबाश, पर तुमने उसका सिर क्यों नहीं काटा?कमांडर ने पूछा
                सर, उसका सिर तो पहले ही कटा हुआ था सिपाही बड़े सैन्य अदब के साथ बोला 
       अब जब कांग्रेस अपनी ही करतूतों से अपनी मौत स्वयं मरने वाली है तब ये गाँधीजी की अंतिम इच्छा पूरी करने का महूर्त देख रहे हैं। पर इन्हें एक बात याद रखनी पड़ेगी कि ये भविष्य बताने वाले पण्डित बहुत शातिर होते हैं और राजतिलक के महूर्त पर ही बनवास भी होने की पुराण कथाओं के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है।

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