सोमवार, 16 मार्च 2015

व्यंग्य चुनावी भविष्यवाणी



व्यंग्य
चुनावी भविष्यवाणी
दर्शक
       वोट डालने के बाद घर लौटी पत्नी से मैंने पूछा- तुमने अपना वोट किसे दिया?
       क्यों बताऊं, वोट गुप्त होता है- उसने नीति वाक्य बोला, और मैं किसी अपराधी की तरह चुप हो गया। मैंने जो एक छोटा सा पोस्ट पोल सर्वेक्षण करने की कोशिश की थी उसमें फेल हो गया था। मैंने सोचा कि जब एक घर में दो लोगों के बीच सही सर्वेक्षण नहीं कर सका तो वे लोग कितने महान हैं कि जो पूरे चुनाव क्षेत्र, पूरे प्रदेश, तो क्या पूरे देश का सर्वेक्षण कर बता डालते हैं कि कौन जीत रहा है।
हम पर दर्द का पर्वत टूटा, तब हमने दो चार कहे
रब उन पर क्या बीती होगी, जिनने शेर हजार कहे

       अभी हाल ही में हमारे मध्यप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने चुनाव परिणामों के बारे में प्रैस के लोगों के सामने कहा कि उनकी पार्टी प्रदेश में लगभग पच्चीस सीटें जीतेगी। उनके इस बयान पर प्रदेश के भूतपूर्व अध्यक्ष समेत कई नेता नाराज हो गये क्योंकि अभी पूरे देश में चुनाव सम्पान्न नहीं हुये थे मिशन 29 के अंतर्गत प्रदेश की पूरी सीटें जीतने का भ्रम बनाये रखना उनके राष्ट्रीय मिशन दो सौ बहत्तर के अंतर्गत जरूरी था। गौर साहब की भी मजबूरी है क्योंकि उन्होंने कभी भोपाल नगर निगम की सीमा से बाहर तब भी नहीं सोचा था जब उनके ऊपर मुख्यमंत्री पद का बोझ डाल दिया गया था।

       अभी गौर साहब की ले दे पूरी ही नहीं हो पायी थी कि कांग्रेस के बयानबाज उछल पड़े जो प्रदेश में चुनाव आने से पहले ही इस बात पर लड़ने लगते हैं कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। और अगर अपनी ही पार्टी के शासन में दूसरा मुख्यमंत्री बन गया तो जीवन बेकार है, इससे तो अच्छा है कि विरोधी दल ही सरकार बना ले। सरकार न बन पाने की स्थिति में वे विपक्ष के नेता पद के लिए लड़ने लगते हैं, वे जो भी लड़ाई लड़ते हैं घर के अन्दर ही लड़ते हैं। इन बयान बहादुरों ने कहा कि गौर साहब बुजुर्ग हो गये हैं इसलिए उनकी गिनती कमजोर हो गयी है, मध्य प्रदेश में कांग्रेस भाजपा के बराबर की सीटें जीतेगी। केन्द्र में मंत्री बनने का सपना देखने के लिए अपनी पार्टी की सरकार बनने का सपना देखना जरूरी होता है और सरकार बनने में गिनती का बड़ा योगदान होता है। 

       उधर दिल्ली में मिशन दो सौ बहत्तर वाले बंगलों का सर्वेक्षण करने लगे हैं कि किसके लिए कौन सा ठीक रहेगा। सात रेसकोर्स रोड वाला तो पहले ही से आरक्षित हो चुका है, पर अडवाणीजी ने भले ही वाणी पर विराम लगा लिया हो पर छीछड़ों के सपने देखना नहीं छोड़ा। वे सोचते हैं कि भाग्यवश छींका अगर टूटेगा तो गिरेगा तो उन्हीं की गोद में। रामभरोसे पूछ रहा था कि अगर मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय हो गया है तो अडवाणीजी क्या बनेंगे? सर्वेक्षण में जिता हरा देने वाले अभी मंत्रिमण्डल के गठन तक नहीं पहुँच पाये हैं, देर सवेर यह भी करने लगेंगे। सपने दिखाने का एकाधिकार नेताओं ने थोड़े ही ले रखा है, वे भी तो यही काम कर रहे है।
       वो दिन दूर नहीं जब सर्वेक्षण वालों, भविष्य वक्ताओं, और जीत के लिए अनुष्ठान करने वालों को भी उपभोक्ता कानून के अंतर्गत लाने की माँग की जायेगी। अगर नेता घर के पैसे से चुनाव लड़ते होते तो चुनाव परिणामों के बाद सभी तरह के भविष्य वक्ता अस्पतालों में नज़र आते।   

        

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