व्यंग्य
हजमुखी बिल्ला
दर्शक
बिल्ले ने फिर हज की तरफ को अपना श्रीमुख
कर लिया है। सौ सौ चूहे खाने के बाद भी पेट कहाँ भरता है सो आसानी से शिकार करने
के लिए उन्हें धोखा देने की जरूरत होती है। देखो मैं तो अब हाजी होने जा रहा हूं। धवल
बगुला भी भगत दिखने के लिए नदी की धार में एक टांग पर धैर्य धन्य नत चोंच खड़ा रहता
है और जहाँ मछ्ली दिखी सो गप्प कर लेता है।
एक और कहावत है मुँह में राम बगल में
छुरी। इसको समझाने की जरूरत ही नहीं है।
सवाल हिंसा का नहीं है धोखे का है।
“सबका साथ, सब का विकास और सब का विश्वास”
यह नया और संशोधित जुमला है।
यह विश्वास अब तक जमा क्यों नहीं? या कहें
कि टूटता क्यों रहता है।
“मैं बैरी सुग्रीव पियारा, कारन कवन नाथ
मोहि मारा”
पेड़ की ओट से तीर चलाते हो प्रभु और
उम्मीद करते हो कि वे विश्वास करें। बकौल दुष्यंत –
उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें
चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिए
सबका विश्वास तो बाद की बात है, पहले
जिन्होंने पहले से विश्वास कर रखा है उनका विश्वास तो बना कर रखो। एक के बदले दस
सिर लाने की शेखी बघारते थे, पर हाल यह है कि दस के बदले एक सिर तो दूर चालीस
जवानों को खो देने के बाद एक अदद काला कौआ और चन्द पेड़। 56 इंच की छाती शिव सेना
के आगे धुकर पुकर करने लगती है।
सच तो यह है कि यह विश्वास टूटने का ही
समय है। सब तरफ की पुलिस जाँचों से निराश होकर जनता सीबीआई की जाँच के लिए दबाव
बनाती थी, पर सीबीआई में अपना आदमी घुसेड़ने के चक्कर में सीबीआई की विश्वसनीयता ही
खत्म कर दी गयी है। अपनी लड़ाई लेकर आदमी सीबीआई जाये और देखे कि वे अपनी लड़ाई लड़
रहे हैं।
निराश आदमी कोर्ट की तरफ देखता था किंतु
पाता है कि कोर्ट खुद प्रैस कांफ्रेंस करके जनता की ओर देख रहे हैं और कह रहे हैं
कि हमारी स्वतंत्रता को बचाओ। सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट तक का विश्वास खो दिया
है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर से लेकर नीति आयोग
के अध्यक्ष तक सारे आर्थिक सलाहकारों का विश्वास हिल गया था इसीलिए वे यह कहते हुए
कि ‘ ये ले अपनी लकुटि कमरिया, भौतई नाच नचायौ” भाग रहे हैं।
प्रधानमंत्री कार्यालय में पदस्थ अनेक
वरिष्ठ अधिकारी अन्दर खाते चल रही गैर संवैधानिक सत्ताओं से इतना परेशान हैं कि
छोड़ कर जाना चाहते हैं। अधिकारी चयन के नये चैनल बना दिये गये हैं और बिना चयन
आयोग की परीक्षाओं से गुजरे लोगों की भरती की जा रही हैं जो विधिवत चयनित लोगों को
हांक रहे हैं।
जनता चुनाव आयोग पर विश्वास खो चुकी है
क्योंकि एक चुनाव आयुक्त ने साफ साफ कह दिया है मेरी असहमतियों को दर्ज ही नहीं
किया जा रहा है। फिर भी कें.चु.आ. चल रहा है और पूरे देश को चलता फिरता कर रहा है।
फिर भी शुभकामनाएं हैं कि अल्पसंख्यक जनता
का विश्वास अगर जीत सकते हो तो जीत लो , पर उससे पहले अपनी आत्मा की अगर कुछ मरी
मरी सी भी आवाज भी आ रही हो तो उसे सुन लो।
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें।
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