गुरुवार, 28 मई 2020

व्यंग्य हरामदेवों के जमाने में


व्यंग्य
हरामदेवों के जमाने में
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उत्तर भारत के लोगों के लिए लगभग सामाजिक संविधान लिखने वाले गोस्वामी पंडित तुलसीदास कहते हैं कि
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिये ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही
तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण बन्धु, भरत महतारी
बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रजबालन, भये मृदु मंगलकारी 
धार्मिक कट्टरता दूसरे की आस्थाओं को सहन ही नहीं कर सकती। कट्टरता मनुष्य से सब कुछ त्यागने को कहती है, कोई रिश्ता नहीं, कोई नाता नहीं। कहा जाता है कि तुलसी बाबा को रिश्तों से लगाव त्यागने का उपदेश तो खुद उनकी निजी पत्नी ने दिया था कि जो प्रीति तुम मुझ से लगा कर सांप को रस्सी समझ लेते हो, वही प्रीति अगर तुम प्रभु राम से लगाओ, तो तुम्हारा जीवन संवर जाये।
प्रेम में जब व्यापार आ जाता है तो व्यक्ति सोचने को विवश हो जाता है कि ज्यादा फायदा काहे में है, पत्नी में या प्रभु में! तुलसीदास को समझ में आ गया था कि प्रभु रूपी रिलायेंस के शेयर में ज्यादा फायदा है सो सारी पूंजी उसी में लगा दी। यही कारण है कि वे दूसरे भक्तों को भी समझाइश देते हैं कि सब रिश्ते नाते छोड़ो, और ऐसा करने वाले तुम ना तो अकेले हो और ना ही पहले हो। प्रह्लाद ने तो अपने बाप को छोड़ दिया था, और छोड़ क्या दिया था अपितु मरवा ही डाला। दतिया के एक कवि पंडित वासुदेव गोस्वामी, जिनका गोस्वामी तुलसीदास से क्या रिश्ता था इसका पता नहीं, जब एक अस्पताल में आपरेशन के लिए भरती हुए तो उन्होंने सर्जन से पूछा कि डाक्टर साहब आपके इष्ट कौन हैं? डाक्टर समझा कि ये आपरेशन से घबरा कर भगवानों को याद कर रहे हैं, सो उसने सांत्वना देते हुए कहा कि आप चिंता न करें मामूली आपरेशन है।
वे बोले डाक्टर साहब आपको मालूम नहीं है, आपके इष्ट हैं नरसिंह भगवान।
डाक्टर चौंका। उसने पूछा कैसे?
वे बोले कि उन्होंने भी चीर फाड़ की थी और वही काम आप भी करते हो।
डाक्टर मुस्कराया तो उन्होंने आगे कहा कि इसीलिए तो अस्पतालों का नाम उन्हीं के नाम पर होता है “नर सिंह होम [ नर्सिंग होम ]”
विभीषण ने अपने बड़े और ताकतवर भाई रावण को त्याग दिया था, भरत ने अपनी मां को त्याग दिया था, बलि ने अपने गुरु को त्याग दिया था और ब्रज की बालाओं ने अपने पति का त्याग कर दिया था।
कसमें वादे प्यार बफा सब बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं, ये झूठे नाते हैं नातों का क्या
बहरहाल इस दौर के एक योग गुरु ने भी ज्यादा फायदा देख कर अपने गुरु को त्याग दिया। और, त्याग देते तो फिर भी अलग बात थी किंतु उसके गुरु तो अंतर्ध्यान ही हो गये। और अंतर्ध्यान भी तब हुये जब योग गुरु विदेश गये हुये थे। कोई आरोप भी नहीं लगा सकता। मशहूर शायर बशीर बद्र का शे’र है –
किसने जलाईं बस्तियां, कुछ लोग क्यों लुटे
मैं चाँद पर गया था मुझे कुछ पता नहीं
तटस्थता का आलम तो यह है कि अपने गुरु के गायब होने पर उनका चेला दुखी तक नहीं दिखा। जरा जरा सी राजनीतिक बात पर अपनी नाक घुसेड़ने वाला यह योगगुरु ना तो अपने गुरु को तलाशने के लिए फिरा, न ही पुलिस पर दबाव बनवाया कि उनकी खड़ाऊं ही लाकर दे दो।
भला हुआ मेरी मटकी फूटी
पनिया भरन से मैं तो छूटी  
       कभी कुम्भनदास ने कहा था- संतन खों कहा, सीकरी से काम , पर आज के संत तो सीकरी की गलियों में ही लिथड़े पड़े हैं। और जो संत भी नेताओं की फोटुओं में पाये जाते हैं, वे देर सवेर किसी न किसी अपराध या घोटाले में लिप्त पाये जाते हैं। पता नहीं किसका किस पर असर पड़ता है।  

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