व्यंग्य
रफाल की पूजा
दर्शक
मेरे एक घनिष्ठ मित्र को कार खरीदना थी
जिसके लिए वे अपनी दोस्ती की दुहाई देते हुए मेरे स्कूटर पर बैठ कर विभिन्न शो
रूमों का चक्कर लगा कुटेशंस एकत्रित कर रहे थे और आटोमोबाइल के लुटते बाज़ार में से
अधिक से अधिक लाभ और उपहार तलाश रहे थे। मैं भी सोचता था कि इसकी कार आ जायेगी तो
मित्रता के नाते मुझे भी बैठने को मिलेगी इसलिए मैं अपना खटारा स्कूटर और आसमान
छूते पैट्रोल के भावों की ओर ध्यान न देकर उन्हें नगरी नगरी द्वारे द्वारे घुमा
रहा था। पर खुशफहमियां अक्सर धोखा खाती हैं, सो मुझे भी मिला। हमारे कैफ भोपाली
साहब तो पहले ही अनुभव बता कर सावधान कर गये थे-
दर्द दुनिया ने दिये, जख्म ज़माने से मिले
ये सारे तोहफे, तुम्हें दोस्त बनाने से
मिले
सो, एक दिन वे आ ही धमके कि चलो आज कार ले
ही आयें। मैं खुश हुआ और बोला कि ले आओ। उन्होंने किसी बेकार से कार वाले के
अन्दाज में बात करते हुए कहा, -तुम्हें चलना पड़ेगा।
मैं भी ऊपर से व्यस्तता दिखाते हुए भी साथ
चलने को तैयार हो गया। फिर बोले अपने मकान की रजिस्ट्री ले लेना। मैं चौंका और
पूछा ‘क्यों?”
वे बोले कि गाड़ी फायनेंस करा रहे हैं, सो
उसमें गारंटी लगेगी।
मैं सकुचाया- तो ये हमारी दम पर गाड़ी खरीद
रहे हैं। कुछ ताड़ कर, बोले – घबराओ नहीं, वे रजिस्ट्री देख कर वापिस कर देंगे।
मन मार कर मैंने रजिस्ट्री रख ली। रास्ते
में उन्होंने नारियल, फूल माला और परसाद भी खरीद लिया। मैं संतुष्ट हो गया। इसमें यह भी ध्यान नहीं आया कि वहाँ से
ये तो कार में आयेंगे और मुझे तो अपना खटारा खुद ही खींच कर आना पड़ेगा। कार की
कीमत पर अंतिम मोलभाव करने, उसका रंग पसन्द करने, और फाइनेंस कराने में पूरा दिन
लग गया। कम्पनी का मैनेजर हम लोगों को टेस्ट ड्राइव भी करवा लाया। उसके भरते
फर्राटे में लगी शीतल हवा को मैंने बहुत गहरे में महसूस किया।
सब हो जाने पर उन्होंने थैले में से
नारियल प्रसाद और फूल माला निकाली, तो मैनेजर ने वहीं एक पंडित को भी बुलवा लिया। पता
नहीं कौन से धर्मग्रंथ से उसने न समझ में आने वाले संस्कृत के श्लोक उच्चारे और
मैं चमत्कृत हो गया कि हमारे ऋषियों, मुनियों ने कितनी दूर की कल्पना करके पहले ही
पैट्रोल चलित वाहन की पूजा के मंत्र गढ रखे थे जो अब पंडितों के काम आ रहे हैं। पूजा
शुरू हुयी तो मैं डर रहा था कि कहीं यह कार के बोनट पर ही नारियल न फोड़ दे, पर
उसने वैसा नहीं किया। सारा परसाद वहीं बंट गया।
जब सब हो गया तो मित्र ने पूछा- तुम्हें
कार ड्राइविंग आती है?
मैंने कहा कि अब तुम्हारी कार आ गयी है सो
उससे सीख लूंगा।
वह बोला कि यह तो बाद की बात है, अभी इस
कार को घर कैसे ले जायेंगे क्योंकि मुझे भी नहीं आती है।
एजेंसी ने कार बेच दी थी, चैक ले लिये थे,
सो उसने भी हाथ खड़े कर दिये थे। उसके ड्राइवर जा चुके थे। हम लोग फिर अपने स्कूटर
से घर वपिस आ गये। पूजा की हुयी कार वहीं शो रूम पर पड़ी रही।
राफेल विमान के बारे में भी ऐसा ही हुआ। सौदा
दूसरे स्तर पर हो चुका था पर विमान पर ओम बनाने और नींबू रखने के लिए राजनाथ को
भेज दिया। सुपर सोनिक स्पीड से चलने में दिमाग सुन्न पड़ जाता है। अरुण शौरी उन्हें
वैसे भी हम्फी डम्फी या एलिस इन वंडरलेंड कहते थे। हमारा कोई पायलट प्रशिक्षित
नहीं है विमान डेढ साल बाद मिलेगा, पर विधानसभा चुनावों में हालत खराब है सो
नारियल फोड़ कर मीडिया के कुत्तों को पाकिस्तान पर भोंकने के लिए छोड़ दो।
मीडिया अब नींबू नारियल के सहारे
पाकिस्तान को थर थर कंपा रहा है।
रामभरोसे का सवाल है कि जब राजनाथ राफेल
पर चढ कर ओम लिख रहे थे तो फ्रांस की विदेशमंत्री हँस क्यों रही थी! उसे दिखायी
नहीं दिया कि पूरी दुनिया हँस रही थी।
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