व्यंग्य
म.प्र. में मंत्रिमण्डल विस्तार
दर्शक
बुन्देली में एक कहावत है- पत्ता पर गुलांट खाना, अर्थात तुरंत ही अपने द्वारा
कही बात से पलट जाना। भाजपा में नीचे से ऊपर तक लोग इस जिमनास्टिक में कुशल हैं।
अगर ओलम्पिक में यह खेल सूचीबद्ध होता तो दस बीस स्वर्ण पदक तो लाये ही जा सकते
थे। देश में आयाराम गयाराम का प्रारम्भ भले ही किसी ने किया हो किंतु इस विधा का
संगठित स्तेमाल कर सरकारें बनाने में जनसंघ और बाद में भाजपा ने शिखर स्थान बनाया।
अगर इस बात को काव्यात्मक भाषा में कहा जाये तो सत्ता के लिए पत्ता पर गुलांट खाने
वालों में वे अग्रणी हैं।
सत्ता से धन और बल दोनों ही प्राप्त होते हैं। पुलिस, सशस्त्र बल. होम गार्ड,
जब संघ के स्वयं सेवकों के साथ मिल जाते हैं तो हर काला मामला सफेद हो जाता है। उस
पर भी अगर टुकड़खोर मीडिया भी साथ दे तो पंचतंत्र की वह कथा घटने लगती है जिसमें
ब्राम्हण को अपनी अच्छी भली बछिया को कुत्ता समझ कर छोड़ देने के लिए मजबूर होना
पड़ा था।
जिसे हाथ के पंजे पर चुनाव लड़ने के लिए टिकिट मिल जाता है, उसे काँग्रेसी कहते
हैं। काँग्रेसी होना किसी आचार विचार से तय नहीं होता। यह गलाकाट प्रतियोगिता में
टिकिट हथियाने में सफल हो जाना होता है। अगर किसी को टिकिट मिल गया तो उसने साबित
कर दिया कि वह ही काँग्रेसी है। जैसे
तालों में ताल भोपाल
ताल, और सब तलैयां हैं
रानी में रानी
पद्मावती और सब गधैयां हैं
काँग्रेस ने जनप्रतिनिधि होने का अर्थ ही बदल दिया है। इसका अर्थ यह है कि रस
से भरे खजाने के भगोने में आपकी स्ट्रा डल गयी। अब जितनी आपकी क्षमता है उतना
सुड़के जाइए। सो काँग्रेसी अपने परिश्रम से टिकिट हासिल करता है, हिकमत से चुनाव
जीतता है और सुड़पने में लग जाता है। पर उसे अपना पेट नहीं भगोने में बचा हुआ रस
दिखता है। नीरज जी की एक कविता है-
देने वाले ने बहुत
दिया
लेकिन मेरी अंजुरि
में साँझ थी
और मेरी लोलुप
दृष्टि
जो उसने दिया उसको
छोड़ कर
जो उसने नहीं दिया
उस पर थी
इसलिए, जो उसने दिया
वह सब मेरे कदमों
में बिखर गया
विधायक बनने के ठीक
बाद यदि काँग्रेस की सरकार बन गयी तो काँग्रेसी मंत्री बनने के लिए तड़फना शुरू कर
देता है या किसी कार्पोरेशन का अध्यक्ष, अर्थात वह डबल स्ट्रा से पीना चाहता है।
भाजपा के लिए काँग्रेसी विधायक हमेशा बिकाऊ माल होता है। वह जानता है कि यह
काँग्रेसी तो पैसा कमाने आया है, इसलिए इसकी पूरी विधायकी में सम्भावित कमाई से
ज्यादा के आफर पर इसे कभी भी खरीदा जा सकता है। यही कारण रहा कि म.प्र., में
काँग्रेस सरकार के बनने के ठीक बाद इन्दौर के एक भाजपा नेता ने कहा था कि ऊपर वालों
का इशारा मिलते ही इस सरकार को किसी भी दिन गिरा सकते हैं। ऊपर वाले ने इशारा करने
में थोड़ी देर कर दी। पता नहीं म,प्र. की सराकार से उन्हें क्या प्रेम था, पर ऐसी
देरी न उन्होंने गोवा में की, न कर्नाटक में की, न हरियाणा में की, न उत्तराखण्ड
में की, न मणिपुर में की।
पर देर आयद दुरस्त आयद। 5 स्टार होटलों की जब प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनती होगी तब
उसकी ग्राहकी के अनुमान में यह नहीं लिखा जाता होगा कि सरकारें बनाने बिगाड़ने से
इनका धन्धा चमकेगा। मीर साहब कह गये हैं कि
हम हुये तुम हुये कि
मीर हुये
उनकी जुल्फों के सब
असीर [कैदी] हुये
सो फाइव स्टार होटले
भी जुल्फें ही हैं जिनमें कैद होकर, विधायक किसी से नहीं मिलना चाहता। वैसे कहा
जाता है कि विधायकों को भी विकल्प दिये गये थे कि या तो 35 करोड़ ले लें या 5 करोड़
और मंत्री पद ले लें। लोगों ने अपनी अपनी क्षमता के अनुसार विकल्प स्वीकारे। पर घर
के लोग कहने लगे कि अगर सब बरातियों को खिला दोगे तो हम क्या भूखों मर जायें। वे
भी जिद पर अड़ गये।
इसलिए बिल्लियों की लड़ाई में बन्दर मामा दोनों तरफ की रोटियां खाये जा रहे
हैं, और महाराज विभीषण अपना सम्मान समेटे फिर रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें