व्यंग्य
गली बाय
दर्शक
जो कभी कहते थे कि –
जिस गली में तेरा घर न हो
बालमा, उस गली से हमें तो गुजरना नहीं –
वे ही अब गाने लगे हैं कि
“तेरी गलियों में न रक्खेंगे कदम आज के बाद”।
मोदी जी को शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन में भाग
लेने किर्गिस्तान की राजधानी विश्केक जाना था जिसका शार्टकट रास्ता पाकिस्तान के
एयररूट से गुजरता है। इसके लिए पाकिस्तान सरकार से अनुमति मांगी गयी थी, जो
उन्होंने दे दी थी। लेकिन उनका मन नहीं हुआ। वे ठहरे मन की बात वाले। सो जैसे वायु
[तूफान] ने रास्ता बदल लिया, वैसे ही उन्होंने भी रस्ता बदल लिया।
पहले
तो कहीं जाते थे तो बीच रस्ते में यार का घर पड़ने पर रुकते जाते थे। उसकी माँ के
लिए शाल ले जाते थे, बच्ची की शादी के लिए भात ले जाते थे और हँसी खुशी बिरयानी खा,
भंगड़ा वगैरह कर के चले आते थे। पर अब उस रस्ते जाने का मन ही नहीं करता। सनम बेबफा
निकला या कहें कि – सनम तू बेबफा के नाम से मशहूर हो जाये। अब दिलवर की रुसवाई
मंजूर हो गई सो सनम को बेबफा ठहराने में कोई दोष नहीं।
ये आशिकी भी बड़ी बुरी चीज है। अपने घर के लोगों
और आशिक के घर के लोगों से बहुत सारी चीजें छुपानी पड़ती हैं। यार की गली से गुजर
रहे हैं और इस तरह से गुजर रहे हैं जैसे साधारण रूप से जा रहे हों। जनाब कैफ
भोपाली लिखते हैं कि –
गुजरना उनकी गली से बेनियाजाना*
ये आशिकों की सियासत किसी को क्या मालूम
[* निरपेक्षता प्रदर्शित करते हुये]
भाजपाई राजनीति की भी अपनी विडम्बनाएं हैं। घर
में तो लोगों को मुसलमानों और पाकिस्तान के खिलाफ नफरत सिखाते हैं, और बाहर के
लोगों के सामने धर्मनिरपेक्ष व सार्क के नेता के रूप में प्रदर्शित करना है। पर
हमेशा रिन्द के रिन्द बने रह कर भी हाथ से जन्नत न छूटने का काम नहीं हो पाता। कई
बार तो – दुविधा में दोनों चले जाते हैं और न तो माया मिलती है न राम।
मोदी के दौर में लोकतंत्र भी अपना नया स्वरूप
ग्रहण कर रहा है। पहले तो जो लोग जनता के बीच में से चुन कर आते थे उनमें से ही
चयनित लोग सरकार चलाते थे। अब बात दूसरी है। जो चुन कर आये हैं, वे केवल बहुमत
बनाने का काम करते हैं। सरकार तो दो लोगों की जोड़ी चला लेगी। जो लोग भी खुद को
मोदी से ज्यादा योग्य समझते होंगे उन्हें बता दिया गया है कि अडवाणीजी किस रास्ते
से बाहर गये हैं। चुनाव तो प्रज्ञा भारती, हेमा मालिनी और उनका सौतेला बेटा तक जीत
जाता है जिसको यह भी नहीं पता कि उसे किसके खिलाफ चुनाव लड़ना है। मनोज तिवारी, रवि
किशन, बाबुल सुप्रियो, साक्षी महाराज, निरंजन ज्योति, आदि तरह तरह के गाने बजाने
वाले या स्वाहा स्वाहा करके भभूत और शाप देने वाले जीत सकते हैं उसकी चिंता नहीं है।
चिंता तो यह है कि पूर्व जनरल, वी के सिंह, पूर्व गृह सचिव आर के सिंह, पूर्व
पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह, पूर्व विदेश सचिव जय शंकर, एनएसए के प्रमुख अजित
डोभाल आदि कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ सरकार चलायेंगे।
गाड़ी बैल पटेल के बन्दे की ललकार
पहले भी जनता के चुने हुए प्रतिनिधि सदन में शोर
मचाने का काम भर करते रहते थे और राज्यसभा में चुने हुए बड़े बड़े मंत्रालय चलाते
थे। नया तरीका यह है कि जैसे भी हो वैसे अपने लोग चुनवा कर बहुमत बनवा लो और फिर
अपनी तरह से सरकार चलाओ, इसी को लोकतंत्र कहते हैं। साक्षी महाराज तो राबर्ट
ब्राउनिंग की कविता ‘लास्ट राइड टुगैदर’ की तरह कह ही गये थे कि बस एक बार 2019
में चुनवा दो फिर तो चुनाव फुनाव क्या होते हैं, भूल जाओगे।
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