व्यंग्य
कोरोना की चिंता में तबादले
दर्शक
अगर मामा का वश चलता तो कोरोना का ट्रांसफर भी कोलकता कर देता।
जो सत्ता से अलग होते ही केवल तबादलों पर ही दहाड़ें मार मार कर रोता रहा, उसने
सबसे पहले आकर तबादले ही किये। जिसके कर सकता था उसके किये। तबादलों के बारे में
कोई पालन करने वाला नियम नहीं है कि प्रशासनिक सुविधा के लिए किसका कितने साल बाद
किया जाना चाहिए, इसलिए हर सरकार भले ही कुछ न करे पर तबादले जरूर करती है। कभी
शरद जोशी ने लिखा था कि जैसे कोई महिला अपने जूड़े से पिन निकाल कर दांतों में दबा
फिर जूड़े में खोंस लेती है, वैसे ही वर्मा जी की जगह शर्मा जी आ जाते हैं और फिर
उसी कुर्सी पर वर्मा जी आ जाते हैं। जिस फाइल पर पहले एन ओ नो लिखा जाता है उसी पर
नोट आ जाने के बाद उसमें टी और ई जोड़ कर नोट लिख दिया जाता है।
नीरज जी ने जो दुनिया के बारे में लिखा है, वही तबादलों के बारे में भी सच है,
अगर सरकार को सरकस मान लिया जाये जो कि कुछ अर्थों में होती भी है-
और प्यारे, ये
दुनिया एक सरकस है
और यहाँ सरकस में
बड़े को भी, छोटे को
भी,
खरे को भी खोटे को
भी
दुबले को भी, मोटे
को भी
नीचे से ऊपर को ऊपर
से नीचे को
आना जाना पड़ता है
और रिंग मास्टर के
कोड़े पर,
कोड़ा जो भूख है,
कोड़ा जो पैसा है
तरह तरह नाच के
दिखाना यहाँ पड़ता है
बार बार रोना और
गाना यहाँ पड़ता है
हीरो से जोकर बन
जाना पड़ता है.......
अफसरों का भी हाल शेरों की तरह होता है जो जनता के लिए जंगल के शेर होते हैं
और नेताओं के लिए सरकस के शेर होते हैं। ऐसे ही लगातार तबादलों पर मेरे एक अफसर
मित्र ने लिखा था-
और कितनी बार
फेंटोगे
पत्ते तो बावन ही
होते हैं,
तिरेपनवां पत्ता
कहाँ से लाओगे
और गर लाओगे तो उसे
तुम
एक जोकर ही पाओगे
कोरोना महामारी है हजारों को लील चुकी है और पता नहीं कितनों को और लील लेगी,
पर यही महामारी सरकारी नेताओं व अफसरों के लिए वरदान बन जाती है। जैसे वे कभी धर्म
की ओट लेते हैं, कभी संस्कृति की, कभी राष्ट्र की, कभी सेना की, कभी शहीदों की, कभी
युद्ध की, कभी आतंकवाद की, वैसे ही कोरोना की ओट भी ले रहे हैं। शेयर बाज़ार गिर
गिर कर अर्थव्यवस्था की जर्जर स्थिति का प्रदर्शन कर रहा था कि तभी कोरोना आ गया
ओट मिल गयी। हाथी के पांव में सबका पांव। कभी बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता था,
अब नेताओं के भाग्य से कोरोना का कहर टूटता है। जैसे शिवराज के भाग्य से सिन्धिया
काँग्रेस से टूटते हैं और राज्यसभा की सीट पक्की कर लेते हैं। पैकेज आयेगा तो सारे
नेताओं अफसरों को सबको खुरचन मिलेगा।
कोरोना के कारण जनता में सोशल डिस्टेंसिंग हो रही है, नेताओं में नजदीकियां बढ
रही हैं, विधायक ही नये मुख्यमंत्री से गले नहीं मिल रहे हैं अपितु विपक्ष के नेता
भी उनसे मिल रहे हैं। शपथ खिलाने के लिए इतने विधायक एकत्रित हो जाते हैं कि गोया
थोड़ी बहुत बची खुची शपथ उन्हें भी खाने को मिल जाये।
वैसे इस जान है तो जहान है, ने देवताओं की बड़ी किरकिरी करा दी लोग मन्दिर
मस्जिदों की जगह डाक्टरों, अस्पतालों पर भरोसा कर रहे हैं। जो बड़े बड़े गौ भक्त
बनते थे उन्होंने भी इलाज हेतु गौमूत्र नहीं अपनाया।
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