गुरुवार, 28 मई 2020

व्यंग्य चुनावों में हनुमान चालीसा


व्यंग्य
चुनावों में हनुमान चालीसा
दर्शक
सत्ता के शिखर तक पहुँचने के लिए लोकतंत्र में जो प्रणाली होती है, उसे चुनाव प्रणाली कहते हैं। हमारे देश में यह प्रणाली नाली में से होकर गुजरती है।
जिन डूबा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ , मैं बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ
चुनावों में कथित रूप से जो स्वस्थ प्रतियोगिता होती है वह गटर लाइन से हो कर जाती है। डूबो, कितनी देर तक डूबा साध सकते हो।
अभी हाल ही में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुये हैं। आजकल चुनाव राजनीतिक दल नहीं लड़ते हैं, उन्हें प्रशांत किशोर लड़वाते हैं। वे सर्वस्वीकार कोच हो गये हैं। 2014 में उन्हें अमितशाह लाये और उन्होंने मोदी को जितवा दिया। फिर काँग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश के लिए कोच बनाया और अपनी खटिया खड़ी करवा ली। फिर प्रदेशवाद का झांसा देकर नितीश कुमार बिहार ले गये और जीत गये, मेहनताने में राज्यसभा का पद हथियाया। वे ही जगन रेड्डी को सलाह देने आंध्रप्रदेश गये और जितवा दिया। सुना है उन्हें शिवसेना ने भी बुलवाया था किंतु सौदा नहीं पटा। इस बार उन्होंने अपने उस दल के नेता से किनारा कर लिया जिसने उन्हें राज्यसभा में भेजा था और आम आदमी पार्टी के लिए काम किया, वह भी जीत गयी। लगता है देश की सारी चुनाव प्रणाली बेकार हो गयी, दलों को ना वादे करने की जरूरत है, न कार्यक्रम और घोषणापत्र घोषित करने की जरूरत है केवल प्रशांत किशोर को गांठ लेना काफी है। हीरा पाव गांठ गठियाओ। ‘हमारे पास माँ है’ की तरह कह सकते हैं कि तुम्हारे सब कुछ के सामने हमारे पास प्रशांत किशोर है।
चुनावों में आम आदमी पार्टी ने प्रशांत किशोर की सलाह पर मौनव्रत साधे रखा, उन्होंने आतंकवादी कहा तो उन्होंने अपनी प्रशासनिक उपलब्धियां गिना कर कहा कि बताओ दिल्ली की जनता के लिए इतना कुछ करने वाला क्या आतंकवादी होगा ! फिर भाजपाई लगातार गिरते गये, भगवाभेषधारी जोगी से क्या क्या नहीं कहलवाया, मोदीशाह के न जीतने पर विजेताओं द्वारा हिन्दुओं की बहिन बेटियों के साथ बलात्कार होने का भयावह चित्रण किया। केजरीवाल की जीत को पाकिस्तान की जीत बताया। सालों को गोली मारो के नारे लगवाये, शाहीन बाग का रास्ता रुकवाने का जिम्मेवार ठहराया पर केजरीवाल चुप रहे। किंतु जब ज्यादा ही हिन्दू मुसलमान होने लगा तो केजरीवाल को भी चिंता हुयी। उन्होंने बिना रुके पूरा हनुमान चालीसा सुना दिया। हनुमान जी के मन्दिर में ढोक भी दे आये। अब लड़ाई रामभक्तों और हनुमानभक्तों के बीच हो गयी। चुनाव की नाली में भक्ति की प्रतियोगिता होने लगी। शिक्षा, चिकित्सा, बिजली और पानी गया पानी में ।
केजरीवाल को बल मिला। जब भी कोई गाड़ी पर चढ कर हमला करने की कोशिश करता तो वे गाने लग जाते
 भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावे
न खांसने की जरूरत पड़ी न भरी सर्दी में मफलर की बस वे गाते रहे-
नासै रोग हरै सब पीरा, जो सुमरित हनुमत बलवीरा
रामभक्तों से भी कहते रहे कि ऊपर से तुम कुछ भी सैंक्शन करा लो, पर फाइल पर काम तो नीचे वाले ही करेंगे
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिन पैसारे
भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द के काज सम्हारे
दूसरे देवताओं के बारे में भी साफ कर दिया कि
और देवता चित्त न धरई, हनुमत वीर सदा सुख करई
धन्य है हमारा लोकतंत्र जो विशुद्ध भारतीय लोकतंत्र है जिसमें ज्योतिषी, पुजारी, मन्दिर मस्जिद, पूजा अनुष्ठान, बाबा, फिल्म स्टार, खिलाड़ी, राजा, रानी, सब चलते हैं, बस विचारधारा नहीं चलती।  
      

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