व्यंग्य
मध्यस्थता का ठेला
दर्शक
बरसात गाँव और शहर का भेद मिटा देती है।
दो चार छींटे पड़ते ही सड़कें उधड़ जाती हैं, जिनमें गड्ढे निरंतर बड़े से बड़े होते
चले जाते हैं। मध्यप्रदेश में कभी निर्मित हो रहे हाई-वे के ठेकेदारों को गाँव से
मिट्टी खुदवाने की सुविधा देने के लिए बलराम तालाब योजना बनायी गयी थी और
ठेकेदारों ने सड़क के नजदीक से मिट्टी खोद कर गड्ढा कर दिया था जिसे सरपंचों ने
बलराम तालाब कह कर मनरेगा के नाम की राशि डकार ली थी। बरसात में तो हर सड़क पर ऐसे बलराम
तालाब बन जाते हैं, जहाँ लोग मुँह के बल गिर कर राम के नाम लेते रहते हैं। आप
कितनों से बच कर निकलेंगे, किसी न किसी में तो गिरेंगे ही।
ऐसे ही सड़कों पर एक विदेशी आदमी खाली ठेला
ढड़काता हुआ आवाजें लगाता चला आ रहा था। घरेलू महिलाएं गली में लगी हर आवाज पर ध्यान
देती हैं और बाहर जरूर झाँकती हैं। रामभरोसे की पत्नी भी आधा किवाड़ खोल उसमें से
आधा धड़ और पूरा सिर निकाल कर खाली ठेला देख लेती हैं, पर फिर भी पूछती हैं – क्या
लिये हो भैय्या?
हम कुछ बेच नहीं रहे हैं। वह बोला
फिर ये ठेला काहे को ढड़काते हुए क्या
चिल्ला रहे हो? उन्होंने पूछा
वो तो हम सड़कों के गड्ढों से बचने और
सहारा लेने के लिए लिये हैं।
श्रीमती रामभरोसे ने अब उसे गौर से देखा।
वह कोई विदेशी पगला लग रहा था, तभी तो गड्ढों मे चलने के सहारे के लिए ठेले का
सहारा ले रहा था। वे अपनी स्वाभाविक स्थिति में आकर बोलीं कि जब कुछ बेचना ही नहीं
है तो काहे के लिए चिचिया रहे हो।
हम सेवाएं बेचते हैं। वह बोला और फिर
चिल्लाने लगा – मध्यस्थता करा लो, मध्यस्थता।
श्रीमती रामभरोसे से नहीं रहा गया। बोलीं
यहाँ किसी को मध्यस्थता की जरूरत नहीं है। पति पत्नी लड़ लेते हैं और करवा चौथ का
ब्रत रख कर सात जन्मों तक उसी लड़ने वाले पति को पुनः प्राप्त करने का संकल्प लेते
रहते हैं। जो मध्यस्थता करने की कोशिश करते हैं हम दोनों उन्हीं का सिर फोड़ देते
हैं।
ऎ मैडम तुम हमें जानती नहीं हो, हम साधारण
मध्यस्थता वाले नहीं हैं, अमेरिका के प्रैसीडेंट हैं और घरों की नहीं देशों के बीच
मध्यस्थता कराने के लिए घूम रहे हैं। कुछ लोगों ने अपने घर में बिना पूछे हमसे
मध्यस्थता करने को कहा था, जिसे हमने अनजाने में सार्वजनिक कर दिया। वे घबरा गये,
उनकी घर में फजीहत हुयी, सो मुकर गये। पर हम नहीं मुकरे, अब भी चिचिया चिचिया कर
कह रहे हैं मध्यस्थता करा लो , मध्यस्थता करा लो। अभी हम हैं, कल का पता नहीं। ‘आज
जो साहिबे मसनद है, कल नहीं होंगे / किरायेदार हैं, जाती मकान थोड़े है’। ठेलेवाले
ने राज की बात बतायी।
श्रीमती रामभरोसे कम थोड़े हैं बोलीं- ऐसा
कैसे हो सकता है। लोगों को पता तो लगना चाहिए कि कौन झूठ बोल रहा है। हो सकता है
तुम ही झूठ बोल रहे होओ।
अरे नहीं वकील दोनों की बात रखने वाली
तरकीब निकाल लेते हैं। पिछली बार हम लोग मिले तो वो हिन्दी में बोले। इससे संकेत
गया कि उन्हें ठीक से अंग्रेजी नहीं आती इसलिए अनुवाद में गलती हो गयी होगी। जो हो
गया उसे जाने दो। हम फिर मध्यस्थता के लिए तैयार हैं। इतना कह कर ठेलेवाला आगे बढ
गया। वह चिल्ला रहा था मध्यस्थता करा लो।
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