व्यंग्य
सबक सिखाने को
उतावले नये गुरू घंटाल
दर्शक
गुरुजी कमर कस कर, जो कमरा जैसी हो गयी है, सबक सिखाने को तैयार हो गये हैं।
यह सबक वे टुकड़ टुकडे गैंग को सिखाने की तैयारी में हैं।
हर कोर्स का एक सैशन होता है। हमारी पढाई के दिनों में यह सैशन जुलाई से शुरू
होकर मार्च-अप्रैल तक चलता था, पर गुरूजी की बात अलग अलग है। वे सबक सिखाने को तब
कमरा कसने लगे हैं जब वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव् में धूल चाटने को मजबूर हो
गये। राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति जैसे पदों का दुरुपयोग किया, ऊंची ऊंची बोलियां
बोलीं, या कहें कि लगायीं, पर बात नहीं बननी थी सो नहीं बनी। अंततः वह सरकार बन ही
गयी जो मोदी के गुरू संभाजी भिड़े इत्यादि से कह सके कि चलो अदालत इंतजार कर रही
है। मोदीजी ने शरद पवार को चाय पर बुलाया और कहा कि मिल कर काम करते हैं, पर शायद
उन्होंने कहा होगा कि हम तो नेचुरली करप्ट कांग्रेस हैं और तुम्हारा सारा काम
अननेचुरल होता है, सो –
कहि रहीम कैसे निभे
केर बेर कौ संग
वे रस डोलत आपने,
इनके फाटत अंग
चाणक्य की चोटी खुलने लगी। फिर लगे हाथ दूसरा बज्रपात हुआ। झारखण्ड में भी
सरकार झंड हो गयी। नम्बर एक, नम्बर दो, दोनों ने मिला कर रैली दर रैली, मीटिंग दर
मीटिंग कर डाली थीं किंतु हासिल वही “बाबाजी का ठुल्लू” । इस बीच एनसीबी, एनसीए बन
गया और एनसीआर में भेदभाव पर देश गर्म हो गया। सोच रहे थे कि इसे हिन्दू मुस्लिम
करके कानूनों के बीच में धार्मिक भेदभाव डालने में सफल हो जायेंगे, किंतु ये
‘अर्बन नक्सलों’ ने वह भी नहीं होने दिया। छात्रों के सामने कलई खोल कर रख दी कि
यह संविधान में धर्मनिरपेक्षता की हत्या का पहला कदम है। सबकी समझ में भी आ गया।
हर जाति धर्म का छात्र आज़ादी के दौर को याद कर तिरंगा लेकर कूद पड़ा। बांटने की
बहुत कोशिश की, जुम्मे के दिन गोलियों से भून कर देश को यह बताने की कोशिश की कि
यह तो केवल मुसलमानों का उत्पात है किंतु उनका पालतू डौगी मीडिया भी अपना खेल नहीं
कर सका। सवाल उठा कि जिन मुस्लिम बहिनों को तीन तलाक पर सुरक्षा दे चुके थे तो
दूल्हा भाइयों से सबूत क्यों मांग रहे हो। उन्हें भी मुख्तार अब्बास नकवी या
शाहनवाज जैसा प्यार क्यों नहीं देते।
चोटी के बाद जब आधुनिक चाणक्य की धोती खुलने का मौका आ गया तब उसने टुकड़ टुकड़े
गैंग को सबक सिखाने के बारे में सोचा। पुराने समय में गुरूजी छड़ी लेकर सबक सिखाते
थे और सोचते थे कि डर के मारे सीख जायेगा। इसलिए बदला लेने का नाम सबक सिखाना बन
गया। सबक किसको सिखाना है उसकी पहचान अभी तक नहीं कर पाये हैं उल्टे उन्हीं पर
आरोप लग रहे हैं कि वे भारत भाग्य विधाता को पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा कर रहे हैं।
देश की जनता को हिन्दू मुस्लिम में बांतने का काम किसने किया? फिर हिन्दी हिन्द्दू
हिन्दुस्तान करके दक्षिण भारतीयों को दूर करने की कोशिश की। मनु स्मृति को संविधान
की जगह रखने की वकालत करने वालों की बात मान ली जाती तो जातियों में बंटे समाज पर
मुहर लग जाती। महिलाओं को चूल्हा चौका रसोई की वकालत करने वाले जेंडर बंटवारे को
मजबूत करने की कोशिश करते रहे। अंतर्जातीय विवाह की ओर ले जाने वाले प्रेम पर
बजरंगी डंडे बरसते रहे। छोटे राज्यों की वकालत कर राज्यों को किसने बांटा?
टुकड़े टुकड़े करने वाले तो नहीं मिल सके थे किंतु ये जो सामने हैं, इन्हें सबक
सिखा दीजिए चाणक्यजी, बड़ी कृपा होगी।
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