व्यंग्य
जहँ जँह संत मठा खों
जांय
दर्शक
बुन्देली में एक कहावत है कि ‘जहँ जहँ संत मठा खों जांय, भैस पड़ा दोउ मर जांय
‘। हमारे देश की वर्तमान स्थितियों में संत की जगह ट्रम्प पढा जा सकता है। सौ करोड़
से ज्यादा खर्च करके हमने ट्रम्प से जिस तरह से नमस्ते की उस के बारे में कहा जा
सकता है कि ‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया’। सिर पर टोपी लगाये नये स्टेडियम में ट्रम्प
को नमस्ते करने वाले एक व्यक्ति से एक पत्रकार ने पूछा कि किस लिए आये थे?
बोला ‘ट्रम्प को नमस्ते कहने’
‘किस बात के लिए नमस्ते कहने?’
‘ यह तो पता नहीं, किंतु अमरीका बड़ा देश है और उसका प्रैसीडेंट कब किसको क्या
दे दे, कहा नहीं जा सकता, इसीलिए सब उन्हें नमस्ते करते रहते हैं।’ वह बोला।
‘ वे अगर दानदाता होते और उन्हें किसी को कुछ देना ही होता तो उसके लिए पहले
से नमस्ते करने की क्या जरूरत थी?’
बहरहाल टोपीधारी मनुष्य थे या रोबोट थे, पर उन्होंने तो आदेश पर नमस्ते ट्रम्प
किया और लोंग लिव इंडिया अमेरिका भी चिल्ला दिया। वे नहीं जानते थे कि भारत एक
बूढा देश है जिसके आगे अमेरिका अभी बच्चा है। सब अपनी अपनी उम्र जियेंगे।
किसी के घर में दावत थी तो उसने पड़ौसी को आमंत्रित किया था। इस आमंत्रण पर
केवल पड़ौसी ही नहीं, उसके पाँच बच्चे भी जो शायद उसने सुदर्शन की सलाह मान कर पैदा
किये होंगे जीमने आ गये। मेजबान के कुढ कर कहा ‘ लज्जा नहीं आयी!’ तो पड़ौसी बोला
कि वह स्कूल गयी हुयी है बस आती ही होगी। उसकी एक बेटी और थी जिसका नाम लज्जा था।
इसी तरह ट्रम्प भी अपनी तीसरी बीबी, बेटी और दामाद के साथ मोदी की मेहमानी
करने चले आये और देश ने सौ सवा सौ करोड़ फूंक दिये। देश के गोदी मीडिया को तो मोदी
के हर काम का गुणगान करने के पैसे मिलते हैं किंतु अमेरिका के अखबारों ने इस
यात्रा की जगह कोरोना वायरस को लीड खबर बनाया। ‘यूएसए टुडे’ अमेरिका का सबसे अधिक
सर्कुलेशन वाला अखबार है जिसने डिफेंस डील की जगह हालीवुड के एक्टर वींस्टीन
जिन्हें यौन अपराधों के 87 आरोपों में से दो मामलों में 25 साल की सजा सुनायी गयी
थी, को प्राथमिकता दी। ट्रम्प से जब इस घटना के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने
कहा था कि मैं उनका कभी प्रशंसक नहीं रहा, हाँ मिशेल ओबामा और हिलेरी क्लिंटन जरूर
उन्हें ‘चाहती’ थीं।
चरित्र हत्या के मामले में भारत और अमेरिका एक जैसे हैं।
वाशिंगटन पोस्ट ने तो अपने कवरेज में साबरमती आश्रम में ट्रम्प को परोसे गये
ब्रोकली समोसे और उनकी नापसन्दगी को प्रमुखता दी। यह समोसा किसी को पसन्द नहीं आया
व विशेष रूप से उनके लिए बनाये गये इस समोसे को उन्होंने हाथ तक नहीं लगाया। अमेरिका
के ही एक मीडिया एमएसएनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ट्रम्प को नीति, संस्कृति
और इतिहास में कोई दिलचस्पी नहीं है। ब्रोकली के समोसे लिखना भूल गया होगा।
हुआ कुछ कुछ ऐसा कि मुर्गी की जान गयी और खाने वाले को मजा नहीं आया। ट्रम्प
ने अपने चुनावी लाभ के लिए भले ही अमेरिका में प्रवास कर रहे भारतीय वोटरों को
बरगला लिया हो किंतु सौ करोड़ फूंक देने वाले भारत के हित में कुछ भी नहीं हुआ।
उन्हें अपने हथियार बेचने थे सो वे तो मोदी जी एक और अमेरिका का चक्कर लगा कर खरीद
ही लेते। समझ में यह भी नहीं आ रहा कि भारत आकर उन्हें मोदी के समानांतर इमरान की
तारीफ करना क्यों जरूरी लगा।
अटल बिहारी ने विपक्ष का सहारा लेकर अफगानिस्तान में जाकर फंसने से इंकार कर
दिया था। काश यही समझ मोदी सरकार भी कायम रख सके। दिल्ली के भयानक दंगे उनके आने
के साथ ही शुरू हुये। पता नहीं कब खत्म होंगे!
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