व्यंग्य
डिटेंशन कैम्प की तैयारी
दर्शक
राम भरोसे टीवी देखते देखते
अचानक उठा और अपनी अटैची लगाने लगा। पत्नी साड़ी का पल्लू खोंस कर उसकी गतिविधि को
किसी सुपरवाइजर की तरह परखने लगी। एक सन्नाटा पसर गया था, पर दोनों अपनी ड्यूटी पर
इस तरह से जमे थे जैसे स्कूल टाइम में गायी गई उनकी प्रार्थना को ‘दया निधे’ ने अब
सुन लिया हो और वे कर्तव्य मार्ग पर डट गये हों।
अंततः पत्नी के श्रीमुख से
ही बोल फूटे और सवाल निकला कि अब कौन सी रैली की तैयारी होने लगी।
“ रैली नहीं, अब तो तुम भी
अपनी अटैची लगा लो और दवाइयों समेत अपना जरूरी सामान रख लेना” वे बोले
“ मैं जानती थी कि बुढापे
में जब किसी से लौ नहीं लग पाती तब लौ लगाने का आदी हो चुका आदमी अनजाने अनदेखे
भगवान से लौ लगाने का भ्रम पाल लेता है। आखिर तुम्हें तीर्थयात्रा का खयाल आ ही
गया। यही खयाल पहले आया होता तो बहुत सारे लोग मुफ्त में सरकारी योजना में हो आये
थे, अपुन भी हो आते। अब रिजर्वेशन की लाइन में लगो और धर्मशालाओं में भटकोगे”
पत्नी ने अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग करते हुए आदतन सारी ज्ञात गलतियों को उस पर
लाद दिया।
“ अरे तीर्थयात्रा नहीं जेल
यात्रा, मैडम” वे झल्ला कर बोले
“ तो मैं क्यों जाऊंगी
जेल?” उन्होंने तुनुक कर कहा
“ इसलिए क्योंकि मोदीशाह
सरकार अब पूरे देश से उसकी पहचान पूछ कर उनका रजिस्टर बनाने जा रही है, और जिसकी
पहचान नहीं है उसे बंगाल की खाड़ी में फेंकने से पहले जेल भेजेगी जिसे डिटेंशन
केम्प कहा जायेगा। तुम्हारी कोई पहचान तो है नहीं, सो तुम्हें बाहरी मान कर पहले
डिटेंशन केम्प में रखेंगे सो साड़ी स्वेटर के साथ मेकअप का सामान भी रख लेना। मेहनत
का काम करने से मेक अप बिगड़ जाता है।” राम भरोसे ने सलाह दी।
“क्यों, मुझे कौन नहीं
जानता ! दूधवाला, किराने वाला, सबका उधार बाकी है। वे नहीं पहचानेंगे तो अपना ही
नुकसान करेंगे। सब्जीवाला तक हमें ठीक से पहचानता है, कल ही प्याज का भाव पूछने पर
कह रहा था कि- छोड़िए आप के खरीदने लायक भाव नहीं हैं, दो सौ रुपये किलो चल रहा है।
अगर नहीं पहचानता होता तो ऐसी बात कैसे कह देता! कल ही शर्माइन, वर्माइन से मेरे
बारे में कह रहीं थीं कि मैं इसे अच्छी तरह पहचानती हूं, कुछ भी मांग कर ले जाये
वापिस करने का सोचती ही नहीं। हूंह।“ कह कर उन्होंने मुँह बिचकाया।
“ सरकार को इस मामले में
गवाही नहीं सबूत चाहिए। कागजी सबूत “
“ कागजी सबूत भी है, कल ही
बिजली वालों का नोटिस आया था कि बिल जमा कर दो नहीं तो बिजली काट देंगे”
“ अरे बिजली बिल वसूलने
वाले तो अब प्राइवेट कम्पनी के हैं, देश भर में कारखाने बन्द होते चले जाने के
कारण बिजली उत्पादक कम्पनियां भी बन्द होती जा रही हैं। उन्हें तो अपना उत्पाद
बेचना है सो वे नागरिक गैर नागरिक किसी को भी बिजली बेच रहे हैं, बस पैसे चुकाता
जाये। इसलिए वह नागरिकता का प्रमाण नहीं है।“ रामभरोसे ने समझाया।
थक हार कर श्रीमती राम
भरोसे जो ससुराल में आकर अपना असली नाम भी भूल चुकी थीं, क्योंकि उन्हें सब
आगरावाली कह कर बुलाते थे, अपना सामान लगाना शुरू कर दिया। देख कर रामभरोसे ने
सलाह दी- माचिस जरूर रख लेना, काम आयेगी।
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