गुरुवार, 28 मई 2020

व्यंग्य गोडसे की भक्ति


व्यंग्य
गोडसे की भक्ति
दर्शक
निदा फाज़ली लिख गये हैं-
सबकी पूजा एक सी अलग अलग हर रीत
मस्ज़िद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत
सो अपनी अपनी रुचि और भक्ति है कि आप गाँधीजी के भगत है, या गाँधीजी को गोली मारने वाले गोडसे के भक्त हैं। यही कारण है कि राम भरोसे को भगवा भेष में रह कर स्वयं को साध्वी कहलाने वाली प्रज्ञा सिंह ठाकुर से, और उनकी गोडसे भक्ति से कोई शिकायत नहीं। उसे तो खुशी इस बात की है कि भाजपा में कोई तो है जो उस पार्टी की परम्परा के विपरीत अपने मन की बात कहने में कोई दुराव नहीं रखता। काफ्का ने अपनी आत्मकथा की भूमिका में लिखा था कि मेरी आत्मकथा पढ कर लोग कहेंगे कि मैं संसार का सबसे बुरा आदमी था, किंतु भरोसा करें कि दुनिया में मुझसे भी बुरे आदमी है, बस उनमें अपनी बात कहने का साहस नहीं है।
गोडसे की भक्त प्रज्ञा ठाकुर भाजपा में अकेली नहीं हैं अपितु जितने भी शाखा से निकले हैं वे गाँधीजी की हत्या को बध कहने वाली किताबें खरीदते बेचते देखे जाते हैं और गोडसे भक्ति करते हैं, इनकी भाषा ही बध, बलि, खून खौलाने आदि से बनी होती है। ये केवल हिंसा की भाषा बोलते हैं, और हिंसा की भाषा समझते हैं।
एक बार किसी कवि सम्मेलन में कोई शायर लगातार खराब गज़लें सुनाये जा रहे थे। गुस्से से उबल रहे एक श्रोता ने डंडा उठाया और मंच के सामने टहलने लगा। कवि डर गया। उसने हाथ जोड़ कर उनसे कहा कि अगर आप को अच्छा नहीं लग रहा हो तो मैं बैठ जाऊं ? डंडाधारी सज्जन ने विनम्रतापूर्वक कहा कि आप तो हमारे मेहमान हैं पढिये, खूब खूब पढिये।
“पर आप डंडा लेकर इधर से उधर चक्कर क्यों लगा रहे हैं।“ डरे हुए कवि ने पूछा
“ मैं तो उस आयोजक को खोज रहा हूं. जिसने आपको आमंत्रित किया है।“ डंडाधारी ने स्पष्ट किया।
प्रज्ञा ठाकुर तो जैसी हैं, वैसी ही हैं, किंतु संवाद के लिए उनको टिकिट देने वालों को खोजा जाना चाहिए कि उन्होंने टिकिटों के लिए मारामारी के दौर में लोकसभा में भेजने के लिए प्रज्ञा ठाकुर का चयन किया था। उल्लेखनीय है कि विभिन्न आतंकी घटनाओं में गिरफ्तार सुश्री ठाकुर को टिकिट देने के लिए किसी भी गुट ने सिफरिश नहीं की थी अपितु मोदी शाह जोड़ी ने स्वयं ही उनका चुनाव किया था। कहते हैं कि जेल में भी उनसे जो लोग मिलने गये थे, उनमें  सुश्री उमा भारती, आशाराम, और राजनाथ सिंह थे। सम्भव है कि इसी दौरान उन्हें सच सच न बोलने के लिए सांसद के टिकिट का वादा किया गया हो।
वैसे भी गाँधीजी की रक्षा के लिए कौन है! नई पीढी ना तो गाँधी के इतिहास को जानती है न उनके जीवन को, जो कहते थे कि ‘मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है’। जिसको भी गान्धी के नाम से लाभ उठाने वालों से मुकाबला करना होता है वह गान्धी की मूर्ति तोड़ने लगता है। सम्भव है कि किसी दौर के औरंगजेबों ने भी यही किया होगा।  
मूर्तियां और जयंतियां इसलिए मनायी जाती हैं ताकि उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम कुछ तो ऐसा कर सकें जो उन महापुरुषों ने किया। जिन लोगों को वही करना है जो गोडसे ने किया था उन्हें गोडसे को राष्ट्रभक्त कहना ही पड़ेगा।     

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