गुरुवार, 28 मई 2020

व्यंग्य जनसंख्या की चिंता में


व्यंग्य
जनसंख्या की चिंता में
दर्शक
जब जनसंख्या नियंत्रण के चक्कर में इन्दिरा-संजय की पार्टी के सदस्यों की संख्या नियंत्रित हो गयी और सरकार चली गयी थी तब से सरकारों की चिंता में राजनीतिक दलों ने जनसंख्या की चिंता करना छोड़ दिया था। सारे शुतुरमुर्गों ने रेत में अपनी गरदनें दबा कर खतरे को खत्म मान लिया था। सरकार की ओर से मुफ्त मिलने वाली सामग्री, गुब्बारे बेचने वालों के यहाँ जा रही थी। अब दिवंगत संजय गाँधी की पत्नी और उनका बेटा सरकारी पार्टी की शोभा बढा रहे हैं और सत्तर साल में कुछ नहीं होने के बयानों के पक्ष में हाँजी हाँ जी कहते रहते हैं।
जनसंख्या नियंत्रण के परिणामों से डरकर सरकारें अब खुद सदन में इस आशय का बिल लाने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं इसलिए वे अपने सदस्य के द्वारा प्राइवेट मेम्बर बिल के रूप में उठवाती हैं। सफल हो गयीं तो अपनी जीत नहीं तो सदस्य की हार। ‘चढ जा बेटे सूली पर भली करेंगे राम’
दोहरापन इनका मूल चरित्र है। जो दिखते हैं वो होते नहीं हैं, जो होते हैं, वो दिखते नहीं हैं। जिस आर एस एस के नेतृत्व ने बार बार हिन्दुओं से चार चार बच्चे पैदा करने की गुहार लगायी थी उसी के विचारक के रूप में प्रचारित व्यक्ति से जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्राइवेट मेम्बर बिल डलवाया गया है।
हिन्दू रामभरोसे परेशान है। वह नेतृत्व की बात मान कर चार बच्चे पैदा करे या प्राइवेट बिल खोदने वाले के नियमों से डर कर रुक जाये नहीं तो उसका वोट देने का अधिकार ही समाप्त हो जायेगा। चिंता दूसरी तरफ से भी घेरती है। यही पार्टी कहती है बेटी बचाओ, बेटी पढाओ। बेचारा बिल वाले भाई साहब की बात मान कर गर्भपात कराने की सोच रहा था कि पता लगा कि ऐसा करना तब और भी बड़ा अपराध हो जायेगा अगर भ्रूण महिला का हुआ। वह फिर अधर में लटक गया। उसी समय हाफ पेंट में रहने के आदी रहे भाई साहब फुल पेंट पहिन कर आ गये बोले लड़कियों को मुसलमान लड़के लव जेहाद में फंसाते हैं। वह फिर परेशान हो गया।
अगर लड़की ने बड़े होकर किसी मुसलमान से शादी कर ली तो चार चार बच्चे पैदा करना, पालना सब अकारथ चला जायेगा। नारा बचाओ का ही नहीं, पढाओ का भी है। ये बच्चे सही से पढने के बाद धर्म को कहाँ मानते हैं! इन्हें बैल पर, या शेर पर, या चूहे पर या भैंसे पर सवारी करने वाले देवी देवता आकर्षित ही नहीं करते। लम्बी जीभ निकाले मुण्डों की माला पहिने तलवार हाथ में लिये देवी या भक्त प्रह्लाद के फादर का पेट फाड़ते हुए आधे नर, आधे सिंह के अवतार पर इन्हें भरोसा ही नहीं होता। इसलिए ना तो बेटी बचाओ का नारा सही है, न बेटी पढाओ का। किताबों के ज्ञान से दूर रखना ही ठीक है।
हम ऐसी सब किताबें काबिले जब्ती समझते हैं
कि जिनको पढ के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं
आबादी बढाने के लिए तो घर वापिसी ही ठीक है। ये जितने रोहंगिया बसे हुये हैं, इन्हें डराया जाये कि वापिस भेज देंगे। ऐसे डरे हुए लोगों को दूसरा उपाय यह बताया जाये कि अगर तुम अपने पुरखों की गलती सुधारते हुए अपने मूल धर्म में वापिसी कर लो तो तुम्हें भारत माता का प्यार मिल जायेगा। ऐसा होने पर हिन्दुओं की आबादी भी बढ जायेगी। पर इसमें भी एक समस्या है, वे कहते हैं कि उन्हें ब्राम्हण, बनिया या ठाकुर बनाया जाये। ऐसा कैसे हो सकता है। देखते नहीं हैं कि ब्राम्हण की बेटी से विवाह करने वाले दलित को काट काट कर फेंका जा रहा है।
राम भरोसे परेशान है। जैसा चल रहा है वैसे में हिन्दुओं की जन संख्या कैसे बढे, और देश की आबादी कैसे घटे। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा।        
  

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