गुरुवार, 28 मई 2020

व्यंग्य गोली मारो ... बीप बीप बीप


व्यंग्य
गोली मारो ... बीप बीप बीप
दर्शक
दुष्यंत कुमार ने कहा था-
अब रिन्द बच रहे हैं, जरा तेज रक्श हो
महफिल से उठ लिये हैं नमाजी तो लीजिए
लगता है कि वही समय आ पहुंचा है। नाच तेज हो गया है, आप चाहें तो नाच के आगे नंगा शब्द लगा सकते हैं किंतु मैं तो आचार संहिता के अंतर्गत अधिक से अधिक बीप बीप बीप लिख और बोल सकते हैं। आचार संहिता हमारे लिए है, उनके लिये नहीं।
अन्धभक्त राम भरोसे से जब यही बात कही तो बोला- अच्छा तो आप केन्द्र सरकार के मंत्री द्वारा उठाये गये नारे के सम्बन्ध में कह रहे होंगे जिन्होंने दिल्ली विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान वो नारा उठाया जिसके अंत में जबाब मिलता है- जूते मारो सालों को।
मैंने कहा कि नहीं, वे अकेले थोड़े हैं, पूरा का पूरा खानदान भरा पड़ा है दामादों से। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के मनोनयन, जिसे निर्वाचन लिखा जाता है, के बाद काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा था कि वे मध्यप्रदेश के दामाद हैं। वहीं दिल्ली के एक दूसरे सांसद जो भी मध्य प्रदेश के दामाद हैं मोदीशाह को बलात्कार से संरक्षण के लिए विकल्पहीन चौकीदार मानते हैं, ने कहा कि अभी अवसर है कि बचा लो बरना अगर ये नहीं रहे तो बहिन बेटियों को बचाने कोई नहीं आयेगा। मोदीशाह नहीं रहे तो वे लोग आयेंगे और तुम्हारी बहिन बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे।
खबर पढ कर मैं भी झंकृत हो गया था। इस देश में कोई कानून व्यवस्था तो है नहीं जो देश के नागरिकों की रक्षा करेगी। इसलिए जिस तरह एक भरे पूरे पुलिस व दीगर रक्षा एजेंसियों हेतु दिये जाने वाले टैक्स के अलावा भी हमें प्राइवेट चौकीदार रखना पड़ता है उसी तरह डा. अम्बेडकर द्वारा रचित संविधान के बाबजूद मोदीशाह को भी नियुक्त रखना होगा। इनके अलावा तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। और चौकीदारी के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत भी नहीं है सिवाय तुच्छ से एक वोट के। कमल के फूल के बटन को दबा देना है और रक्षा शुरू हो जायेगी। शाह जी ने इतना अवश्य जोड़ा है कि दूर तक करंट फैलाने के लिए उसे जोर से दबाना है। वैसे यह एक नई थ्योरी है कि जितनी जोर से बटन दबाया जाता है, करंट उतनी दूर तक जाता है। वैज्ञानिकों को इस दिशा में काम करना चाहिए। वैसे अमितशाह लालू परसाद के चरण चिन्हों पर चलने की असफल कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने कभी कहा था कि बटन तब तक दबाना जब तक कि भाजपा की चीं न बोल जाये। उनका इशारा वोट देते समय ईवीएम मशीन से निकलने वाली ध्वनि से था।
रामभरोसे उसी तरह अपने मुद्दे से नहीं हटता जिस तरह हिन्दू राष्ट्र बनाने वाले भले ही संविधान के आगे सिर झुकाने का पाखंड कर लेते हैं किंतु मौका मिलते ही फिर उसी पर लौट आते हैं। वह बोला देखो, हमारे माननीय मंत्रीजी ने तो केवल देश के गद्दारों के प्रति जनता के उद्गारों को जानने हेतु सवाल उछाला था जिसका उत्तर जनता की ओर से आया कि उनके प्रति क्या व्यवहार किया जाये। मंत्रीजी तो मासूम हैं और जनता से पूछ पूछ कर फैसले लेते हैं। उत्तेजित तो जनता है। कानून से न्याय की प्रतीक्षा करेंगे तो वे पार्टी विथ ए डिफरेंस कैसे रहेंगे। ..... और जिसे आप गाली समझ रहे हैं, वह गाली नहीं है अपितु एक रिश्ता है। हमारे यहाँ कहा जाता है कि दीवार बिगाड़ी आलों ने और घर बिगाड़ा सालों ने, इसलिए ऐसे सालों को गोली मार देना चाहिए। वैसे भी माननीय मंत्रीजी ने यह जिक्र तो नहीं ही होने दिया कि गोली कहाँ पर मारना चाहिए, दिल में या दिमाग में या पैरों में, पिस्तौल से, बन्दूक से, या ऐसे ही उठा कर कंकरिया की तरह मार देना चाहिए। वैसे भी उन्होंने गद्दारों को मारने के लिए कहा है, आपको इसमें क्या तकलीफ है!
रामभरोसे तो क्या किसी भी भक्त के आगे बहस करना बेकार है, क्योंकि वह व्हाट्स एप्प यूनीवर्सिटी से शिक्षित है जो आस्था और कानून की जगह बदलते रहते हैं, और नंगे नाच पर तालियां बजाते रहते हैं।

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