गुरुवार, 28 मई 2020

व्यंग्य मार्गदर्शक मंडल की सुध


व्यंग्य
मार्गदर्शक मंडल की सुध
दर्शक
हिन्दी फिल्मों का एक गाना था, जी हाँ गाना, गीत नहीं। वह कहता था- जब लगा कलेजा फटने, खैरात लगी है बंटने। सब जानते हैं कि इसे अन्य अनेक गानों की तरह एक लोकोक्ति में किंचित परिवर्तन करके इन्दीवर ने इसे गाने में बदला था। जिसे वह लोकोक्ति याद हो वह इसे वैसा ही समझ ले, क्योंकि वह यहाँ लिखी नहीं जा सकती। उनकी न सही, हमारी तो कुछ मर्यादाएं हैं।
मुद्दे की बात पर आते हैं, अब ये अलग बात है कि हर मुद्दा आजकल मोदी जी से जुड़ ही जाता है क्योंकि वे ही देश के लिए सबसे बड़ा मुद्दा हैं। सो मोदीजी मौका देख कर मार्गदर्शक मंडल में मुरब्बे की तरह पड़े हुए मुरली मनोहर के मकान पर पहुंचे। बहाना था उनके जन्मदिन का। बहाना इसलिए क्योंकि जन्मदिन तो हर साल आता ही रहा, किंतु मोदीजी नहीं आते रहे। इस अवसर पर उन्होंने तीस मिनिट से ज्यादा दिये। पता नहीं कि उन्होंने इससे पहले मंडल के इन मार्गदर्शक से मशवरा किया या नहीं, या किया हो तो गुप्त तरीके से किया होगा क्योंकि लोगों को तो क्या अडवाणीजी तक को पता नहीं चला, बरना उनके दोनों हाथों की उंगलियां और अधिक मजबूती से फंस जातीं। उनके हाथ जोड़ने का यही तरीका देखा गया है।
मोदीजी की बधाई के अगले दिन ही मुरली मनोहर ने एक मार्गदर्शन सार्वजनिक कर दिया  कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति को हटा दिया जाना चाहिए। जोशीजी खुद भी लम्बे समय तक विश्व विद्यालय से प्रोफेसर का वेतन लेते रहे हैं, इसलिए उन्हें विश्वविद्यालय के बारे में पता ही होगा। मोदीजी की बात अलग है जिन्होंने एंटायर पोलटिकल साइंस में डिग्री प्राप्त करना बताया है जो डिग्री राफेल की फाइल की तरह अंतर्ध्यान हो गयी है जिसकी तलाश के लिए कोई सद्गुरु उनकी मदद नहीं कर पा रहा।
पता नहीं कि इस अवसर पर अडवाणी जी क्या सोचते होंगे कि जब देश समस्याओं से भर गया है फिर भी उनका मार्गदर्शन क्यों नहीं मांगा जा रहा है। जन्मदिन तो उनका भी पड़ता ही है, भले ही वे उस जगह पैदा हुये हों जो अब पाकिस्तान में आ गया है। एक चुटकला है कि पूछा गया कि जंगल में शेर मिल जाये तो क्या करोगे?
उत्तर दिया गया कि फिर मुझे क्या करना है, जो कुछ करेगा शेर ही करेगा। शेर एक जानवर होता है।
कभी खुद को दूसरा लौहपुरुष कहलवाने वाले अडवाणी जी का यह उपनाम भी समय रहते मोदीजी ने हड़प लिया था। अब तो वे इस बात की खैर मना रहे हैं कि वे नाम के ही सही, मार्गदर्शक मंडल के सदस्य तो बने हुये हैं। उनके देखते ही देखते अनेक स्वाभाविक मृत्यु हो गयीं-
साथी अटल बिहारी जी चले गये
प्रिय शिष्या सुषमा स्वराज चली गयीं
एडवोकेट अरुण जैटली जी चले गये
अनिक्षा से रक्षा मंत्री रहे मनोहर पारीकर चले गये
अनंत कुमार जी चले गये
अनिल माधव दवे चले गये
राम जेठमलानी चले गये 
सो अडवाणीजी आप कुछ मत बोलना, न ही वह कविता पढना जिसमें कहा गया है कि मर जाने के बाद आदमी कुछ नहीं सोचता, मर जाने के बाद आदमी कुछ नहीं बोलता, कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने पर आदमी मर जाता है।
चलते चलते बताता चलूं कि फैज़ की नज़्म ‘हम देखेंगे’ आजकल हिन्दुस्तान में राष्ट्रगीत से अधिक गायी जा रही है। पता नहीं ये कविताएं कहाँ से फूट कर निकलने लगती हैं।    

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